जब सरकार का खर्च उसकी आय से ज्यादा हो जाता है, यानी सरकार जितना कमाती है (टैक्स और दूसरे साधन) उससे ज्यादा खर्च करती है—तो जो अंतर होता है, उसे फिस्कल डेफिसिट कहते हैं.
जब सरकार अपनी कमाई से ज़्यादा खर्च करती है, तो उस अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं।
- सरकार की कमाई = टैक्स, सरकारी कंपनियों से आय, आदि
- सरकार का खर्च = सड़कें बनाना, स्कूल चलाना, सेना का खर्च, योजनाएं आदि
उदाहरण: अगर सरकार की कमाई ₹100 है और खर्च ₹120 है, तो ₹20 का घाटा हुआ — यही राजकोषीय घाटा है।
आसान भाषा में समझना
- जैसे घर का बजट सोचो—अगर महीने की कमाई 8,000 रुपये है लेकिन खर्च 10,000 रुपये है, तो 2,000 रुपये का घाटा हो गया।
इस फर्क को पूरा करने के लिए सरकार उधार (लोन) लेती है ,बॉन्ड बेच कर या इंटरनेशनल बैंक से कर्जा लेती है |
सरकार यह घाटा पूरा कैसे करती है?
जब सरकार को ज़्यादा खर्च करना होता है, तो वो ये घाटा पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेती है, जैसे बॉन्ड बेचकर या बैंक से उधार लेकर। यह पैसा सरकार विकास कार्यों में लगाती है, जैसे अस्पताल बनाना या बेरोजगारी भत्ता देना। लेकिन अगर घाटा ज्यादा बढ़ जाए, तो सरकार को ज्यादा कर्ज चुकाना पड़ता है, जिससे ब्याज का बोझ बढ़ता है।
सरल भाषा में: घाटा एक तरह का ‘क्रेडिट कार्ड’ जैसा है – आज खर्च करो, कल चुकाओ।
राष्ट्रीय बैंक (जैसे RBI) और सरकार इस पर ध्यान क्यों देती हैं?
राष्ट्रीय बैंक (जैसे मे RBI – Reserve Bank of India) और सरकारें इस पर ध्यान देती हैं क्योंकि:
- ज्यादा घाटा हुआ तो सरकार को कर्जा ज्यादा लेना पड़ता है, जिससे देश का कुल कर्ज बढ़ जाता है।
- इसका असर महंगाई पर भी पड़ सकता है—अगर सरकार ज्यादा पैसा खर्च करती है तो बाजार में पैसे ज्यादा आ जाते हैं, जिससे चीजों के भाव बढ़ सकते हैं.
- ज्यादा घाटा से विदेशी निवेशक डर सकते हैं, क्योंकि उन्हें लगेगा कि देश की आर्थिक स्थिति कमजोर है।
- बैंक (जैसे RBI) ये देखता है कि सरकार उधार लेकर आर्थिक ग्रोथ पर खर्च कर रही है या सिर्फ पेंशन/सुब्सिडी में उधार ले रही है। ग्रोथ वाला खर्च अच्छा, लेकिन सिर्फ उधारी के सहारे चलना ठीक नहीं.
- मुद्रा (currency) की कीमत गिर सकती है।
- नीति बनाने में मदद: बैंक और सरकार घाटे को देखकर ब्याज दरें तय करती हैं या टैक्स नीतियां बदलती हैं। उदाहरण: RBI घाटे को देखकर मुद्रा नीति बनाता है ताकि अर्थव्यवस्था संतुलित रहे।,इसकी एक सीमा तय होती हैं (जैसे भारत में FRBM कानून के तहत घाटे को GDP के 3% तक रखने का लक्ष्य) ताकि देश की क्रेडिट रेटिंग अच्छी रहे और कर्ज आसानी से मिले।
यह देश की अर्थव्यवस्था में कैसे मदद करता है?
राजकोषीय घाटा हमेशा बुरा नहीं होता; यह अर्थव्यवस्था की मदद भी करता है
अच्छा फिस्कल डेफिसिट तब होता है जब सरकार उधार लेकर देश के लिए स्कूल, अस्पताल, सड़क जैसी चीजें बनाती है। इससे:
- इससे रोजगार बढ़ता है
- इससे देश में उत्पादन और व्यापार बढ़ता है
- सरकार का ज़्यादा खर्च नौकरियाँ पैदा करता है।
- बाज़ार में पैसा आता है, जिससे व्यापार बढ़ता है।
- GDP बढ़ती है, यानी देश की आर्थिक ताकत बढ़ती है।
- इससे लोगों की भलाई और देश की ताकत बढ़ती है
- संकट में सहारा -अगर अर्थव्यवस्था सुस्त है, तो घाटा सरकार को ‘पंप प्राइमिंग’ करने देता है – मतलब, पैसा डालकर इंजन चालू करना
लेकिन घाटा बहुत बढ़ गया तो देश पर कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है—फिर ब्याज चुकाना ही मुश्किल हो सकता है, जो कि ठीक नहीं
इसको निकलते कैसे है –
फिस्कल डेफिसिट = कुल खर्च – (कुल आय, उधार को छोड़कर)
इसे जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बताते हैं—जैसे “इस साल भारत का फिस्कल डेफिसिट 5% है” मतलब जीडीपी का 5% सरकार घाटे में खर्च कर रही है।
सरकार घाटा कम करने के लिए कौन‑कौन से कदम लेती है –
- कर सुधार: टैक्स चोरी रोकना, टैक्स सिस्टम को आसान बनाना, बेस बढ़ाना, और डिजिटलाइजेशन लाना ताकि ज्यादा लोग टैक्स दें और सरकार की आय बढ़े.
- सरकारी खर्च में कटौती: गैर-जरूरी सब्सिडी, फालतू योजनाओं या प्रशासनिक खर्च को कम करना; फालतू मुफ्त देने पर रोक लगाना.
- राजस्व बढ़ाना: सरकारी कंपनियों की बिक्री (निजीकरण), नई टैक्स योजनाएँ लाना, और सार्वजनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग करना.
- छूट और सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना: मौजूदा छूटों/सब्सिडी को ऐसे डिज़ाइन करना कि सिर्फ ज़रूरतमंद को मिले और अनावश्यक बोझ बजट पर न पड़े.
- आर्थिक विकास को तेज़ करना: निवेश बढ़ाकर, इंफ्रास्ट्रक्चर और उद्योगों को बढ़ावा देना जिससे ज्यादा रोजगार और व्यापार पैदा हो ताकि आगे चलकर सरकार का टैक्स कलेक्शन भी बढ़ जाए.
- उधारी सावधानी से लेना: सरकार उधारी या बॉन्ड इश्यू करते वक्त ध्यान रखती है कि ब्याज का बोझ काबू में रहे। साथ ही, ज्यादा बाहरी कर्ज से बचती है ताकि विदेशी दबाव न हो.
- कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) को प्राथमिकता देना: ऐसा खर्च जिससे लंबे वक्त में सरकार को फायदा मिले—जैसे सड़कें, रेलवे, बिजली आदि पर खर्च ज्यादा फायदेमंद है क्योंकि इससे आगे जाकर आय बढ़ती है.

