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Fiscal Deficit ( राजकोषीय घाटा )क्या होता है और राष्ट्रीय बैंक और सरकारें इस पर क्यों ज्यादा ध्यान देती हैं?

जब सरकार का खर्च उसकी आय से ज्यादा हो जाता है, यानी सरकार जितना कमाती है (टैक्स और दूसरे साधन) उससे ज्यादा खर्च करती है—तो जो अंतर होता है, उसे फिस्कल डेफिसिट कहते हैं.

जब सरकार अपनी कमाई से ज़्यादा खर्च करती है, तो उस अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं।

उदाहरण: अगर सरकार की कमाई ₹100 है और खर्च ₹120 है, तो ₹20 का घाटा हुआ — यही राजकोषीय घाटा है।

आसान भाषा में समझना

इस फर्क को पूरा करने के लिए सरकार उधार (लोन) लेती है ,बॉन्ड बेच कर या इंटरनेशनल बैंक से कर्जा लेती है |

सरकार यह घाटा पूरा कैसे करती है?

जब सरकार को ज़्यादा खर्च करना होता है, तो वो ये घाटा पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेती है, जैसे बॉन्ड बेचकर या बैंक से उधार लेकर। यह पैसा सरकार विकास कार्यों में लगाती है, जैसे अस्पताल बनाना या बेरोजगारी भत्ता देना। लेकिन अगर घाटा ज्यादा बढ़ जाए, तो सरकार को ज्यादा कर्ज चुकाना पड़ता है, जिससे ब्याज का बोझ बढ़ता है।

सरल भाषा में: घाटा एक तरह का ‘क्रेडिट कार्ड’ जैसा है – आज खर्च करो, कल चुकाओ।

राष्ट्रीय बैंक (जैसे RBI) और सरकार इस पर ध्यान क्यों देती हैं?

राष्ट्रीय बैंक (जैसे मे RBI – Reserve Bank of India) और सरकारें इस पर ध्यान देती हैं क्योंकि:

यह देश की अर्थव्यवस्था में कैसे मदद करता है?

राजकोषीय घाटा हमेशा बुरा नहीं होता; यह अर्थव्यवस्था की मदद भी करता है

अच्छा फिस्कल डेफिसिट तब होता है जब सरकार उधार लेकर देश के लिए स्कूल, अस्पताल, सड़क जैसी चीजें बनाती है। इससे:

लेकिन घाटा बहुत बढ़ गया तो देश पर कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है—फिर ब्याज चुकाना ही मुश्किल हो सकता है, जो कि ठीक नहीं 

इसको निकलते कैसे है –

फिस्कल डेफिसिट = कुल खर्च – (कुल आय, उधार को छोड़कर)

इसे जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बताते हैं—जैसे “इस साल भारत का फिस्कल डेफिसिट 5% है” मतलब जीडीपी का 5% सरकार घाटे में खर्च कर रही है।

सरकार घाटा कम करने के लिए कौन‑कौन से कदम लेती है –

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