Leverage (लेवरेज) क्या होता है और ये कैसे काम करता है?

किसी चीज़ (जैसे पैसा या संसाधन) का “सहारा लेकर ज़्यादा फायदा उठाना” या “लाभ को बढ़ाना”। आसान भाषा में, जब कोई अपने पास लिमिटेड पैसा हो, और बाकी पैसा उधार लेकर कोई बड़ा काम करता है, तो उसे leverage कहते हैं या जब आप अपने पास कम पैसे होते हुए भी किसी से उधार लेकर या किसी सुविधा का इस्तेमाल करके ज़्यादा निवेश करते हैं, तो उसे लेवरेज कहते हैं।

Leverage आसान शब्दों में –

  • Leverage का सीधा अर्थ है “लाभ उठाना” या “सहारा लेना”
  • फाइनेंस में, leverage का मतलब है—कम पैसे और बाकी उधार पैसे लगाकर ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की कोशिश करना।

Leverage कैसे काम करता है –

सरल उदाहरण से समझे :-

मान लीजिए राम के पास ₹1,000 हैं ,उसे एक ऐसा मोबाइल दिखा जिसकी कीमत ₹5,000 है और वो जानता है कि कुछ दिनों में उसकी कीमत ₹6,000 हो जाएगी।

राम अपने दोस्त श्याम से ₹4,000 उधार लेता है और मोबाइल खरीद लेता है।

कुछ दिन बाद राम उस मोबाइल को ₹6,000 में बेच देता है।

  • कुल कमाई = ₹6,000
  • कुल खर्च = ₹5,000
  • मुनाफा = ₹1,000

राम ने सिर्फ ₹1,000 लगाए थे, लेकिन ₹1,000 का मुनाफा कमाया — यानी 100% रिटर्न। ये हुआ ₹5,000 लेवरेज का कमाल

Leverage के नुकसान: –

  • जोखिम बढ़ जाता है: जितना मुनाफा बढ़ सकता है, उतना ही नुकसान भी बहुत तेजी से बढ़ सकता है, क्योंकि नुकसान होने पर उधारी चुकानी ही पड़ती है।
  • ब्याज और दबाव: उधारी वाले पैसे पर ब्याज देना होता है, जिससे दबाव बढ़ जाता है अगर मुनाफा कम हुआ तो भी ब्याज तो देना ही पड़ेगा।
  • आर्थिक संकट का खतरा: अगर व्यापार या निवेश में उम्मीद अनुसार लाभ नहीं हुआ, तो कर्ज चुकाने में बहुत कठिनाई हो सकती है और आर्थिक हालत भी खराब हो सकती है।
  • मानसिक दबाव बढ़ता है: उधार की वजह से तनाव और चिंता बढ़ सकती है।
  • कंपनी दिवालिया हो सकती है: अगर लेवरेज ज़्यादा हो और बिज़नेस न चले, तो कंपनी बंद भी हो सकती है।

Leverage के फायदे :-

  • कम पूंजी में बड़ा लाभ: लिवरेज से कम पैसों में ज्यादा निवेश या व्यापार किया जा सकता है, जिससे मुनाफा बढ़ सकता है।
  • विकास के नए मौके: इसके सहारे कंपनी या व्यक्ति नए मौके और बड़े मौके पकड़ सकता है, जो अपने पैसों से शायद संभव न हो।
  • कर (टैक्स) में छूट: जो पैसा उधार लिया जाता है, उस पर जो ब्याज जाता है, उसमें अक्सर टैक्स छूट भी मिल सकती है।
  • मुनाफा बढ़ाने का मौका: अगर सौदा सफल रहा, तो आपका मुनाफा कई गुना हो सकता है।
  • बिज़नेस में ग्रोथ जल्दी होती है: कंपनियाँ उधार लेकर जल्दी विस्तार कर सकती हैं।
  • संसाधनों का बेहतर उपयोग: कम संसाधनों से ज़्यादा काम निकलवाया जा सकता है।

एक लाइन में समझो:

लेवरेज एक तेज़ रफ्तार गाड़ी की तरह है — सही तरीके से चलाओ तो जल्दी मंज़िल मिलेगी, लेकिन गलती हुई तो बड़ा एक्सीडेंट भी हो सकता है।

माइक्रो(Microeconomy) इकॉनमी क्या है और ये किसी भी देश के लिए क्यों जरुरी ?

 मैक्रोइकॉनोमय या मिक्रोइकॉनॉमिक्स का मतलब होता है एक छोटे स्तर पर अर्थव्यवस्था का अध्ययन, जिसमे हम एक व्यक़्ति, घर का परिवर, या छोटी बिज़नेस की आर्थिक फैसले और व्यवहार को समझते है। ये अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो व्यक्तिगत इकाइयों जैसे एक उपभोक्ता, एक उत्पादक से संबंधित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करती है। माइक्रोइकॉनॉमिक्स विशिष्ट बाज़ारों, क्षेत्रों या उद्योगों के विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करता है।

माइक्रो इकॉनमी छोटे स्तर मेंअर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है

जैसे:

  • एक दुकान वाला क्या बेचता है और कितने में बेचता है
  • ग्राहक क्या खरीदते हैं और क्यों खरीदते हैं
  • एक फैक्ट्री कितना माल बनाती है और कितनी लागत लगती है

यानि ये उस छोटे-छोटे फैसलों को समझता है जो लोग, दुकानदार, कंपनियाँ रोज़ाना लेते हैं।

आसान उदाहरण से समझो:-

मान लो आपके गाँव में एक चाय की दुकान है।

  • अगर चाय ₹10 की है और लोग ज़्यादा खरीदते हैं, तो दुकानदार खुश होता है।
  • अगर चाय ₹20 की हो जाए और लोग कम खरीदें, तो दुकानदार को नुकसान हो सकता है।

अब ये जो चाय की कीमत, ग्राहक की पसंद, और दुकानदार का फैसला है — ये सब माइक्रोइकोनॉमिक्स के अंदर आता है।

ये किसी देश के लिए क्यों ज़रूरी है?

इक्रोइकोनॉमिक्स से हमें ये समझ आता है कि:

  • लोग क्या खरीदना पसंद करते हैं
  • कंपनियाँ कैसे काम करती हैं
  • सरकार टैक्स या सब्सिडी कैसे दे ताकि लोगों को फायदा हो

इससे देश की नीतियाँ बनती हैं — जैसे:

  • गरीबों को सस्ती चीज़ें कैसे मिलें
  • किसानों को सही दाम कैसे मिले
  • बेरोजगारी कैसे कम हो

यानि देश की तरक्की के लिए ये बहुत ज़रूरी है।

माइक्रोइकोनॉमिक्स के आसान उदाहरण –

1. सब्ज़ी मंडी का भाव

  • अगर टमाटर की फसल ज़्यादा हो गई, तो मंडी में टमाटर सस्ते हो जाते हैं।
  • अगर बारिश से फसल खराब हो गई, तो टमाटर महंगे हो जाते हैं।

ये मांग और आपूर्ति का खेल है — माइक्रोइकोनॉमिक्स यही समझाता है कि कीमतें कैसे तय होती हैं।

2. दूध बेचने वाला किसान

  • एक किसान सोचता है कि वो दूध ₹50 लीटर बेचे या ₹60 लीटर।
  • वो देखता है कि ग्राहक कितने पैसे देने को तैयार हैं और कितना मुनाफा उसे मिलेगा।

ये लाभ अधिकतमकरण (Profit Maximization) का उदाहरण है।

3. मोबाइल खरीदने का फैसला

  • आप सोचते हैं कि ₹10,000 वाला मोबाइल लें या ₹15,000 वाला।
  • आप अपनी ज़रूरत, बजट और पसंद के हिसाब से फैसला लेते हैं।

ये उपयोगिता अधिकतमकरण (Utility Maximization) कहलाता है — यानि जो चीज़ आपको सबसे ज़्यादा फायदा दे।

4. एक दुकान की बिक्री

  • दुकान वाला देखता है कि कौन-सी चीज़ ज़्यादा बिक रही है — नमकीन, बिस्किट या साबुन।
  • वो उसी चीज़ का ज़्यादा स्टॉक मंगवाता है और बाकी कम करता है।

ये उपभोक्ता व्यवहार (Consumer Behavior) का हिस्सा है।

सरकारी सब्सिडी का असर

  • सरकार कहती है कि गैस सिलेंडर पर ₹200 की सब्सिडी मिलेगी।
  • इससे गरीब लोग ज़्यादा गैस सिलेंडर खरीदते हैं।

ये दिखाता है कि सरकार के फैसले से लोगों का व्यवहार कैसे बदलता है — माइक्रोइकोनॉमिक्स इसे भी समझता है।

माइक्रोइकोनॉमिक्स को समझने के पैमाने:-

1. मांग (Demand)

2. आपूर्ति (Supply)

3. कीमत (Price)

4. उपयोगिता (Utility)

5. लाभ (Profit)

6. उत्पादन लागत (Cost of Production)

7. बाजार संरचना (Market Structure)

8. सरकारी नीतियाँ (Government Policies )

पूंजीगत व्यय या कैपेक्स क्या है ,सरकार क्यों कैपेक्स बढ़ाते है ?

Capex का मतलब है “Capital Expenditure” यानी पूंजीगत खर्चा। ये वो पैसा होता है जो कोई कंपनी, सरकार या कोई संस्था अपने लंबे समय तक चलने वाले assets (जैसे मशीन, फैक्ट्री, बिल्डिंग, सड़क, या टेक्नोलॉजी) को खरीदने या सुधारने में खर्च करती है।

सरकार और देश के लिए Capex बहुत जरूरी होता है क्योंकि यही खर्चा नई इन्फ्रास्ट्रक्चर (जैसे सड़क, अस्पताल, बिजली, ट्रेन लाइन) बनाने, उद्योगों को बढ़ाने, और देश की आर्थिक ताकत बढ़ाने में काम आता है। जब सरकार या कंपनी Capex बढ़ाती है, तो इससे नए काम पैदा होते हैं, लोग रोजगार पाते हैं, और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।

सरल भाषा में समझें तो, जैसे घर बनाने के लिए ज़मीन खरीदना, ईंट- पत्थर लगाना और मजबूत छत बनाना है तो उसके लिए पैसे खर्च करना पड़ता है , वैसे ही देश को और कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर खर्चा यानी Capex करना पड़ता है।

उदाहरण: अगर सरकार नए हायवे बनाती है या फैक्ट्री खोलती है, तो ये Capex होता है जो भविष्य में देश की प्रगति में मदद करता है। यह खर्चा आमतौर पर लंबे समय तक फायदा देने वाला होता है,

देश की अर्थव्यवस्था पर Capex का असर –

नए रोजगार बनना

जब सरकार या कंपनियां Capex करती हैं, जैसे नई फैक्ट्री, सड़क, या बिजली पावर प्लांट बनाना, तो वहां काम के लिए मजदूर, इंजीनियर, टेक्नीशियन आदि की जरूरत होती है। इससे रोजगार बढ़ते हैं और लोग पैसे कमाने लगते हैं, जिससे उनकी खरीदारी बढ़ती है |

उत्पादन और व्यापार बढ़ता है

Capex से ज्यादा कारखाने, मशीनरी, और संसाधन उपलब्ध होते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है। उत्पादन बढ़ने का मतलब है कि देश में ज्यादा सामान बनेंगे, जिन्हें बेचकर देश की आय बढ़ेगी |

आर्थिक विकास तेज़ होता है

जब Capex बढ़ता है, तो देश की इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर होती है जैसे सड़क, रेलवे, बिजली। इससे व्यापार करना आसान होता है, सामान जल्दी और सस्ते में मिलता है, और निवेश भी बढ़ता है। इससे GDP यानी देश की कुल आर्थिक क्रियाकलाप बढ़ते हैं,Capex करने से देश की आर्थिक ताकत बढ़ती है क्योंकि ये लंबे समय तक चलने वाले संसाधन बनाते हैं जो भविष्य में ज्यादा उत्पादन और सेवाएं देंगे। इस तरह से देश की स्थिर और दीर्घकालिक वृद्धि होती है |

सरकार Capex (पूंजीगत व्यय) को बढ़ाने के लिए तय करती है कि GDP का कितना हिस्सा Capex पर खर्च किया जाएगा |

कुछ Capex बढ़ाने के तरीके –

  1. बजट में आवंटन बढ़ाना: सरकार हर साल अपना बजट बनाती है जिसमें तय करती है कि कुल खर्च में से कितना पैसा Capex पर खर्च होगा। उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 में Capex को 7.5 लाख करोड़ रुपये (लगभग 2.9% GDP) तक बढ़ाया था ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके.
  2. प्राथमिकता तय करना: सरकार विभिन्न क्षेत्रों जैसे सड़क, रेलवे, शहरी विकास, बंदरगाह, और नागरिक उड्डयन में कितना निवेश करना है, यह तय करती है। पिछले समय में सड़क और रेलवे पर अधिक खर्च होता था, लेकिन अब सरकार शहरी बुनियादी ढांचे और एयरलाइंस जैसे नए सेक्टर्स पर भी ध्यान दे रही है.
  3. नीतिगत निर्णय: सरकार Capex बढ़ाने के लिए नई नीतियां बनाती है, जैसे प्राइवेट सेक्टर को निवेश के लिए प्रेरित करना, सप्लाई चेन की समस्याओं को हल करना, और सरकारी खरीद के नियमों में सुधार करना ताकि निवेश प्रक्रिया सुगम हो सके.
  4. पिछले वर्षों का विश्लेषण: सरकार पिछले सालों की आर्थिक स्थिति और विकास की रफ्तार को देखकर Capex का लक्ष्य निर्धारित करती है ताकि अर्थव्यवस्था को बेहतर बढ़ावा मिल सके।

GDP का कितना हिस्सा Capex के लिए खर्च होता है?

देश की सरकारें यह तय करती है कि GDP का कितना हिस्सा Capex पर खर्च किया जाए। उदाहरण के लिए, भारत ने FY 2022-23 में लगभग 2.9% GDP को Capex के लिए रखा और वही FY 2025-2026के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संघीय बजट में पूंजी व्यय लक्ष्य को 10.08% बढ़ाकर 11.21 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव दिया है। यह प्रतिशत देश की आर्थिक जरूरतों और विकास लक्ष्यों के हिसाब से बदलता रहता है |

सरल शब्दों में: – सरकार देश की जरूरत, पैसे की उपलब्धता, और आर्थिक संतुलन का ध्यान रख कर तय करती है कि GDP का कितना हिस्सा कैपेक्स में लगाया जाए ताकि देश की समृद्धि बढ़े।

सरकार का उद्देश्य यह होता है कि Capex बढ़ाने से आर्थिक विकास तेज हो, रोजगार बढ़े, और देश की आधारभूत संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) बेहतर बने, जिससे भविष्य में देश की उत्पादन क्षमता मजबूत हो |

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) क्या है? 

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) का मतलब है किसी भी देश या क्षेत्र में हर एक व्यक्ति की औसत आय कितनी है। इसे बहुत ही सरल भाषा में समझें तो, यह बताता है कि अगर किसी देश की कुल कमाई को वहां के सभी लोगों में बराबर बांट दिया जाए, तो हर व्यक्ति के हिस्से में कितनी आय आएगी।

प्रति व्यक्ति आय विभिन्न देशों के अलग-अलग जीवन स्तर का एक महत्वपूर्ण सूचकांक होती है। यह मानव विकास सूचकांक में सम्मिलित तीन संख्याओं में से एक है। अनौपचारिक बोलचाल में प्रति व्यक्ति आय को औसत आय भी कहा जाता है, और आमतौर पर अगर एक राष्ट्र की औसत आय किसी दूसरे राष्ट्र से अधिक हो, तो पहला राष्ट्र दूसरे से अधिक समृद्ध और सम्पन्न माना जाता है।

कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ वार्षिक रूप से विश्वभर के देशों की प्रति व्यक्ति आय की सूचियाँ बनाती हैं।

यह सूचियाँ दो आधारों पर बनाई जाती हैं –

  • अभारित सूची (Nominal) – यह सरल सूचियाँ सीधे कमाई जाने वाली मुद्रा में आय को लेकर अभारित रूप से (यानि बिना किसी फेर-बदल के) बनाई जाती है और अधिकतर इन्हीं सूचियों का प्रयोग होता है।
  • क्रय-शक्ति समता पर आधारित सूची (PPP) – यह सूचिया क्रय-शक्ति समता के आधार पर बनती हैं और इनसे यह अंदाज़ा लगाया जाता है कि किसी क्षेत्र में लोग अपनी आय से कितना खरीद सकते हैं, जो भिन्न माल और सेवाओं की स्थानीय कीमतों पर निर्भर करता है।

कैसे निकालते हैं प्रति व्यक्ति आय –

जीडीपी प्रति व्यक्ति आय को नॉमिनल जीडीपी को देश की जनसंख्या से भाग देकर निकाला जाता है। इससे तय होता है कि देश में प्रति व्यक्ति औसत आय कितनी है। जब किसी वर्ष की जीडीपी की गणना की जाती है ,उसी वर्ष के मध्य की जनसंख्या का आंकड़ा भाग करने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • प्रति व्यक्ति आय = कुल राष्ट्रीय आय ÷ कुल जनसंख्या
  • उदाहरण: अगर किसी देश की कुल सालाना आय 80 लाख रुपये है और वहां 10 लोग रहते हैं, तो प्रति व्यक्ति आय होगी 80,00,000 ÷ 10 = 800,000 रुपये।

इसका क्या महत्व है –

  • यह किसी देश या क्षेत्र के लोगों की औसत आर्थिक स्थिति को दिखाता है।
  • इससे पता चलता है कि उस देश के लोगों का जीवन स्तर (standard of living) कितना अच्छा और ख़राब है।
  • इसका उपयोग देशों या राज्यों की तुलना करने या वहाँ की आर्थिक प्रगति समझने के लिए भी किया जाता है |

आसान भाषा में समझिए –

  • “प्रति व्यक्ति” यानी “हर व्यक्ति के लिए”,
  • “आय” यानी “कमाई”।
  • जैसे स्कूल में टीचर 100 टॉफियाँ 20 बच्चों में बराबर बांट दे, तो हर बच्चे को 5 टॉफियाँ मिलती हैं। ठीक वैसे ही, देश की कुल कमाई जितने लोग हैं, उनके बीच बांट दी जाती है, तो प्रति व्यक्ति आय पता चलती है।

मुख्य बातें –

  • यह औसत आय है, सभी लोगों की कमाई एक जैसी नहीं होती, पर यह एक साधारण माप है।
  • देश की वास्तविक खुशहाली के लिए सिर्फ यह आंकड़ा काफी नहीं है, मगर तुलनात्मक और योजनाबद्ध सोच के लिए यह आसान और जरूरी तरीका है।

GST Reforms से इकॉनमी पे क्या असर पड़ेगा ?

GST सुधारों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, खासकर उपभोक्ता खर्च (consumption) को बढ़ावा देने में। नए GST सुधारों के तहत टैक्स स्लैब्स को सरल बनाकर और जरूरी वस्तुओं पर टैक्स दरें कम करके उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ कम किया जाएगा, जिससे उनकी क्रय क्षमता बढ़ेगी। इससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी और GDP वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

इसके साथ ही व्यवसायों के लिए भी चीजें आसान बनाने की कोशिश है. 5% और 18% की नई टैक्स स्लैब्स साथ-साथ हानिकारक और लग्जरी वस्तुओं के लिए 40% की दर वाला यह नया टैक्स स्ट्रक्चर उपभोक्ता खर्च और आर्थिक विकास को बढ़ाने के अलावा मिडिल क्लास और एमएसएमई को राहत प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है |

जीडीपी पर क्या असर पड़ेगा

  • उपभोक्ता खर्च (Consumption): रोजमर्रा की वस्तुओं, पैकेज्ड फूड आइटम्स और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सहित अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं पर जीएसटी दरें कम करने से उपभोक्ताओं के लिए कीमतें सीधे तौर पर कम हो जाएंगी, जो खर्च और मांग को बढ़ावा देंगी , भारत की GDP में उपभोक्ता खर्च लगभग 60% होता है, इसलिए यह सुधार सीधे GDP को 0.3% से 0.7% (30-70 बेसिस प्वाइंट) तक बढ़ा सकता है।
  • औपचारिक अर्थव्यवस्था (Formal Economy): टैक्स स्लैब simplification और बेहतर प्रशासन से अधिक व्यवसाय GST के दायरे में आएंगे, जिससे औपचारिक अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा।
  • आसान टैक्स स्ट्रक्चर : ज्यादातर वस्तुओं और सर्विसेज के लिए चार स्लैब से दो स्लैब फ्रेमवर्क (5% और 18%) में बदलाव से प्रोसेस आसान होने और भारत में व्यापार करने में आसानी में सुधार होने की उम्मीद है.सुधारों के कारण कर ( Tax )अनुपालन आसान और कम महंगा होगा, जिससे इनका विकास बढ़ेगा।
  • सरकारी राजस्व और वित्तीय स्थिति (Revenue and Fiscal Health):
  • शुरुआती चरण में कुछ राजस्व में कमी हो सकती है, लेकिन दीर्घकाल में कर संग्रह में वृद्धि की उम्मीद है। GST के दो-स्तरीय सुधार से सरकार के राजस्व घाटे की संभावना है, खासकर केंद्र सरकार के लिए। हाल की रिपोर्ट्स और विश्लेषणों के अनुसार, GST की दरों में कटौती के कारण भारत सरकार को सालाना कम से कम 3,700 करोड़ रुपये से लेकर 48,000 करोड़ रुपये तक का राजस्व घाटा हो सकता है। कुछ विश्लेषणों में यह घाटा 10,000 करोड़ से ऊपर भी अनुमानित है इससे सरकार का वित्तीय घाटा थोड़ा प्रभावित हो सकता है, लेकिन सुधार स्थायी और प्रगतिशील होंगे।

संक्षेप में –

  • GST सुधार उपभोक्ता खर्च को सबसे ज्यादा प्रभावित करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी।
  • छोटे व्यवसाय और औपचारिक क्षेत्र को लाभ मिलेगा।
  • सरकार को राजस्व का कुछ हिस्सा कम मिलेगा लेकिन कुल मिलाकर आर्थिक वृद्धि बढ़ेगी।

कब लागू होंगी gst की नई दरें : नई जीएसटी दरें 22 सितंबर, 2025 से प्रभावी होंगी.

सेक्टर्स को फायदा 

खाद्य और घरेलू वस्तुएं:
रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं जैसे साबुन, टूथपेस्ट, ब्रेड, पैकेज्ड फूड आदि पर GST दर 5% हो जाएगी, जिससे उपभोक्ताओं को रियायत मिलेगी और इन वस्तुओं की मांग बढ़ेगी।

इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता वस्तुएं:
टीवी, एयर कंडीशनर, डिशवॉशर, छोटे घरेलू उपकरणों पर GST 18% से कम होकर अधिक वहनीय होगी। इससे इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और बिक्री में बढ़ोतरी होगी।

गृह निर्माण और निर्माण सामग्री:सीमेंट और अन्य निर्माण सामग्री पर GST दर कम होने से हाउसिंग सेक्टर को मजबूती मिलेगी, निर्माण की लागत घटेगी और नया निवेश बढ़ेगा।
ऑटोमोबाइल सेक्टर:
वाहन और ऑटो पार्ट्स के लिए स्पष्ट कर वर्गीकरण और टैक्स दरों में बदलाव से विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
कृषि और स्वास्थ्य:
कृषि आधारित उत्पादों और स्वास्थ्य सेवाओं पर टैक्स में छूट और सुधार से ये सेक्टर्स और भी प्रतिस्पर्धी बनेंगे।
एमएसएमई और स्टार्टअप:
अनुपालन और टैक्स भरने में आसानी आने से छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स को लाभ होगा, जिससे उनकी आर्थिक गतिविधि बढ़ेगी।

GST सुधारों से आम जनता को सीधे क्या लाभ होंगे ?

लघु उद्योग भारती (एलयूबी) संगठन ने जीएसटी परिषद की अनुमोदित नई सरलीकृत कर संरचना का स्वागत किया है। संगठन ने कहा कि 22 सितंबर से लागू होने वाले 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के दो-स्तरीय जीएसटी स्लैब भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी बदलाव साबित होंगे।

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) में नए सुधारों से आम लोगों की जेब को बड़ी राहत मिलेगी. 3 सितंबर को 56वीं GST काउंसिल की बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में नया टैक्स स्ट्रक्चर मंजूर किया गया. अब केवल दो मुख्य स्लैब – 5% और 18% – होंगे. साथ ही हानिकारक सामानों पर 40% का विशेष टैक्स लगेगा.

उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ेगी: टैक्स स्लैब को दो में सीमित करने और सुधार से उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती होंगी, जिससे खरीद क्षमता बढ़ेगी।

कीमतों में कमी से राहत: जीएसटी दरों को कई आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर कम कर दिया गया है, जिससे खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएं, सीमेंट, कृषि उपकरण आदि सस्ते होंगे और आम आदमी की दैनिक जरूरतों पर खर्च कम होगा।

रोज़गार और आर्थिक विकास में योगदान: सस्ती वस्तुओं की अधिक मांग से उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

स्वास्थ्य सेवाओं की सस्ती उपलब्धता: जीवन रक्षक दवाओं और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी हटने से स्वास्थ्य संबंधी खर्च कम होंगे।

कृषि व छोटे उद्योगों को लाभ: खेती से जुड़े उपकरण और छोटे उद्योगों पर टैक्स कटौती से किसान और छोटे कारोबारियों को राहत मिलेगी।

डेयरी किसानों को होगा फायदा

सरकार ने खेती में इस्तेमाल होने वाली चीजों और डेयरी उत्पादों पर जीएसटी की दरें कम कर दी हैं। इससे किसानों को बहुत मदद मिलेगी। कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CLFMA) के अध्यक्ष दिव्या कुमार गुलाटी ने डेयरी प्रोडक्ट पर टैक्स कम करने को प्रगतिशील कदम बताया। उन्होंने कहा कि इससे भारत के 8 करोड़ डेयरी किसानों को फायदा होगा।