फॉरेक्स ट्रेडिंग का क्या है?

फॉरेक्स ट्रेडिंग (FOREX Trading) का मतलब है एक देश की मुद्रा (जैसे भारतीय रुपया) को दूसरी देश की मुद्रा (जैसे अमेरिकी डॉलर) के साथ बदलना—ता​कि भविष्य में जब उनकी कीमतें बदलें, तो इससे लाभ कमाया जा सके |

फॉरेक्स ट्रेडिंग (Forex Trading) को विदेशी मुद्रा व्यापार (Foreign Exchange Trading) या करेंसी ट्रेडिंग भी कहा जाता है। यह एक वैश्विक बाजार है जहाँ विभिन्न देशों की मुद्राओं का व्यापार किया जाता है। फॉरेक्स बाजार दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय बाजार है, जहाँ प्रतिदिन लगभग $7 ट्रिलियन का व्यापार होता है।

विदेश यात्रा करते समय फॉरेक्स ट्रेडिंग करेंसी एक्सचेंज की तुलना में एक ट्रेडर एक करेंसी खरीदता है और दूसरी करेंसी बेचता है, और एक्सचेंज रेट आपूर्ति और मांग के आधार पर अक्सर अलग-अलग होती है|

सरल भाषा में –

  • सोचिए, आपके पास कुछ रुपये हैं और आप अमेरिका घूमने जा रहे हैं। एयरपोर्ट या बैंक से आप रुपये देकर डॉलर खरीदते हैं। इसी तरह विदेशी लोग भी अपनी करेंसी बेचकर रुपये खरीदते हैं। जब आप ज्यादा रेट पर बेचते हैं या कम रेट पर खरीदते हैं, तो बीच का फर्क ही आपका मुनाफा या घाटा बनता है।
  • फॉरेक्स ट्रेडिंग में लोग इस बदलती हुई कीमत का फायदा उठाने के लिए करेंसी खरीदना-बेचना करते हैं।
  • उदाहरण : – आज 1 डॉलर = ₹85 है, आपने डॉलर खरीदा। कल वही डॉलर ₹90 पर बिकता है, तो आपने 5डॉलर कमा लिया।
  • ये खरीद-बिक्री एक ऑनलाइन बाजार (market) में होती है, जिसे FOREX या FX Market कहते हैं। यह दुनियाभर का सबसे बड़ा ट्रेडिंग मार्केट है — यहाँ रोज़ करोड़ों का लेन-देन होता है।
  • यहाँ ज्यादातर लेनदेन बैंक, बड़ी कंपनियाँ और कुछ लोग ऑनलाइन करते हैं।
  • फॉरेक्स मार्केट 24 घंटे, सप्ताह में पाँच दिन खुली रहती है

फॉरेक्स मार्केट एक विकेन्द्रीकृत (Decentralized) बाजार है, जिसका मतलब है कि इसका कोई भौतिक स्थान नहीं होता। यह बाजार 24 घंटे, सोमवार से शुक्रवार तक खुला रहता है। इसमें अलग-अलग समय क्षेत्रों के अनुसार व्यापार किया जाता है, जैसे:

  1. सिडनी सेशन
  2. टोक्यो सेशन
  3. लंदन सेशन
  4. न्यूयॉर्क सेशन

इन सेशन्स के कारण व्यापारी दुनिया भर से अपनी सुविधा के अनुसार ट्रेडिंग कर सकते हैं।

फॉरेक्स ट्रेडिंग कैसे काम करती है?

फॉरेक्स ट्रेडिंग में आप एक करेंसी को खरीदते हैं और दूसरी को बेचते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य एक करेंसी की कीमत में वृद्धि (Appreciation) या कमी (Depreciation) का लाभ उठाना है।फॉरेक्स ट्रेडिंग बहुत सरल ढंग से कहें तो अलग-अलग देशों की मुद्राओं (जैसे रुपया, डॉलर, यूरो) को एक-दूसरे से ऑनलाइन खरीदने और बेचने की प्रक्रिया है। इसमें लोग उम्मीद करते हैं कि बदलती कीमतों से मुनाफा कमा लेंगे।

  • फॉरेक्स ट्रेडिंग हमेशा करेंसी पेयर (जोड़ों) में होती है, जैसे USD/INR (अमेरिकी डॉलर/भारतीय रुपया) या EUR/USD (यूरो/डॉलर)। इसका अर्थ: एक मुद्रा को बेचकर दूसरी मुद्रा खरीदना।
  • उदाहरण: अगर आपको लगता है कि डॉलर की कीमत बढ़ेगी, तो आप “खरीद” (Buy) का ऑर्डर लगा सकते हैं। अगर बाद में डॉलर महंगा हो गया, तो आप बेचकर फायदा कमा सकते हैं।
  • इसी तरह, अगर लगता है कि कोई करेंसी सस्ती हो जाएगी, तो आप उसे “बेच” (Sell) सकते हैं, और बाद में सस्ती कीमत पर खरीदकर मुनाफा कमा सकते हैं।

फॉरेक्स ट्रेडिंग कौन कर सकता है?

  • कोई आम इंसान भी सही तरीके से (सरकारी नियम मानकर) फॉरेक्स ट्रेडिंग कर सकता है। भारत में यह स्टॉक एक्सचेंज (NSE/BSE) के जरिए अधिकृत ब्रोकर्स की मदद से होता है।

सबसे जरूरी — रिस्क

  • इसमें मुनाफा जितना तेज़ हो सकता है, उतना घाटा भी जल्द हो सकता है। भाव रोज बदलते हैं, इसलिए समझदारी और जानकारी से ही इसमें ट्रेडिंग करनी चाहिए।

सारांश:
फॉरेक्स ट्रेडिंग में असल में सिर्फ अलग-अलग देशों की मुद्राएँ खरीदना और बेचना होता है—प्रॉफिट कमाने के लिए। यह दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, पर इसमें बहुत समझदारी और जोखिम के साथ काम करना जरूरी है।

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) क्या है? 

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) का मतलब है किसी भी देश या क्षेत्र में हर एक व्यक्ति की औसत आय कितनी है। इसे बहुत ही सरल भाषा में समझें तो, यह बताता है कि अगर किसी देश की कुल कमाई को वहां के सभी लोगों में बराबर बांट दिया जाए, तो हर व्यक्ति के हिस्से में कितनी आय आएगी।

प्रति व्यक्ति आय विभिन्न देशों के अलग-अलग जीवन स्तर का एक महत्वपूर्ण सूचकांक होती है। यह मानव विकास सूचकांक में सम्मिलित तीन संख्याओं में से एक है। अनौपचारिक बोलचाल में प्रति व्यक्ति आय को औसत आय भी कहा जाता है, और आमतौर पर अगर एक राष्ट्र की औसत आय किसी दूसरे राष्ट्र से अधिक हो, तो पहला राष्ट्र दूसरे से अधिक समृद्ध और सम्पन्न माना जाता है।

कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ वार्षिक रूप से विश्वभर के देशों की प्रति व्यक्ति आय की सूचियाँ बनाती हैं।

यह सूचियाँ दो आधारों पर बनाई जाती हैं –

  • अभारित सूची (Nominal) – यह सरल सूचियाँ सीधे कमाई जाने वाली मुद्रा में आय को लेकर अभारित रूप से (यानि बिना किसी फेर-बदल के) बनाई जाती है और अधिकतर इन्हीं सूचियों का प्रयोग होता है।
  • क्रय-शक्ति समता पर आधारित सूची (PPP) – यह सूचिया क्रय-शक्ति समता के आधार पर बनती हैं और इनसे यह अंदाज़ा लगाया जाता है कि किसी क्षेत्र में लोग अपनी आय से कितना खरीद सकते हैं, जो भिन्न माल और सेवाओं की स्थानीय कीमतों पर निर्भर करता है।

कैसे निकालते हैं प्रति व्यक्ति आय –

जीडीपी प्रति व्यक्ति आय को नॉमिनल जीडीपी को देश की जनसंख्या से भाग देकर निकाला जाता है। इससे तय होता है कि देश में प्रति व्यक्ति औसत आय कितनी है। जब किसी वर्ष की जीडीपी की गणना की जाती है ,उसी वर्ष के मध्य की जनसंख्या का आंकड़ा भाग करने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • प्रति व्यक्ति आय = कुल राष्ट्रीय आय ÷ कुल जनसंख्या
  • उदाहरण: अगर किसी देश की कुल सालाना आय 80 लाख रुपये है और वहां 10 लोग रहते हैं, तो प्रति व्यक्ति आय होगी 80,00,000 ÷ 10 = 800,000 रुपये।

इसका क्या महत्व है –

  • यह किसी देश या क्षेत्र के लोगों की औसत आर्थिक स्थिति को दिखाता है।
  • इससे पता चलता है कि उस देश के लोगों का जीवन स्तर (standard of living) कितना अच्छा और ख़राब है।
  • इसका उपयोग देशों या राज्यों की तुलना करने या वहाँ की आर्थिक प्रगति समझने के लिए भी किया जाता है |

आसान भाषा में समझिए –

  • “प्रति व्यक्ति” यानी “हर व्यक्ति के लिए”,
  • “आय” यानी “कमाई”।
  • जैसे स्कूल में टीचर 100 टॉफियाँ 20 बच्चों में बराबर बांट दे, तो हर बच्चे को 5 टॉफियाँ मिलती हैं। ठीक वैसे ही, देश की कुल कमाई जितने लोग हैं, उनके बीच बांट दी जाती है, तो प्रति व्यक्ति आय पता चलती है।

मुख्य बातें –

  • यह औसत आय है, सभी लोगों की कमाई एक जैसी नहीं होती, पर यह एक साधारण माप है।
  • देश की वास्तविक खुशहाली के लिए सिर्फ यह आंकड़ा काफी नहीं है, मगर तुलनात्मक और योजनाबद्ध सोच के लिए यह आसान और जरूरी तरीका है।

फेयर वैल्यू गैप (Fair Value Gap) ट्रेडिंग में क्या होता है ?

फेयर वैल्यू गैप (Fair Value Gap) ट्रेडिंग में एक ऐसा प्राइस रेंज होता है जहाँ बहुत कम या बिलकुल भी ट्रेडिंग नहीं हुई, खासतौर पर अचानक भारी खरीद या बिक्री के कारण। ऐसे गैप चार्ट पर तीन कैंडल के पैटर्न से बनते हैं, और ट्रेडिंग में इन्हें प्राइस के वापस लौटने व रिवर्स होने के संभावित ज़ोन के तौर पर यूज़ किया जाता है

फेयर वैल्यू गैप क्या है?

  • जब प्राइस अचानक तेजी से ऊपर या नीचे भागता है और क्रमशः तीन कैंडल्स में से पहले और तीसरे कैंडल के बीच एक खुला गैप दिखता है, इसे ही फेयर वैल्यू गैप कहते हैं.
  • उदाहरण: अपट्रेंड में अगर पहली कैंडल का हाई और तीसरी का लो अलग-अलग हों, बीच की कैंडल के प्राइस रेंज में ‘गैप’ रह जाए, वही FVG है।

सरल शब्दों में Fair Value Gap की अवधारणा क्या है?

एक Fair Value Gap (FVG) मूल रूप से वर्तमान बाजार कीमत और आर्थिक कारकों या तकनीकी विश्लेषण में औसत की ओर वापसी के विचार के आधार पर इसकी मानी जाने वाली कीमत के बीच का अंतर है। यह अक्सर बाजार भावना, आर्थिक समाचार, या भू-राजनीतिक घटनाओं से उत्पन्न होता है जो अस्थायी रूप से किसी मुद्रा की कीमत को उसके मौलिक मूल्य से ऊपर या नीचे धकेल देते हैं। इन असंतुलनों का उपयोग व्यापारी मूल्य सुधारों से लाभ कमाने के लिए कर सकते हैं।

FVG की पहचान कैसे करें ?

Fair Value Gap (FVG) ट्रेडिंग के लिए विभिन्न दृष्टिकोण हैं |

1. तीन लगातार कैंडल्स का समूह लें

चार्ट पर कहीं भी तीन लगातार कैंडल चुनें और उनका प्राइस रेंज गौर से देखें.

2. रेंज की तुलना करें

  • मिडल (बीच) कैंडल की प्राइस रेंज पर फोकस करें।
  • अगर पहली कैंडल का हाई और तीसरी कैंडल का लो (अपट्रेंड में) आपस में ओवरलैप नहीं करते, तो बीच वाली कैंडल के प्राइस रेंज में ‘गैप’ बनता है.

3. मार्क करें FVG

  • जो प्राइस रेंज पहली और तीसरी कैंडल से टच नहीं हो रही, उस हिस्से को चार्ट पर हाइलाइट या मार्क कर लें—यही आपका FVG है.

4. कंफर्म करें

  • देखें प्राइस बाद में इस FVG ज़ोन में वापस आता है या नहीं।
  • प्राइस अगर वहां रिवर्स, बाउंस या ठहराव दिखाए तो FVG कंफर्म मान सकते हैं।
  • वॉल्यूम या अन्य सप्लीमेंट्री इंडिकेटर से भी जांचें.

FVG के पीछे Psychology विचार क्या है?

FVG के पीछे की मनोविज्ञान दिखाता है कि बाजार में अचानक खरीद या बिक्री का दबाव बढ़ गया जिससे प्राइस ने एक तेज़ मूव किया और कुछ प्राइस रेंज पूरी तरह से स्किप हो गई। इसका मतलब है कि उस समय बाजार में खरीदार या विक्रेता की इच्छा असंतुलित थी।इस असंतुलन को व्यापारी पहचानकर समझते हैं कि बाजार को उस “खाली” हिस्से या गैप को भरने की कोशिश करनी है जिससे उस क्षेत्र पर फिर से ट्रेडिंग हो सकती है.

जो व्यापारी इस सिद्धांत का पालन करते हैं, वे मानते हैं कि बाजार समय के साथ खुद को सुधारने की प्रवृत्ति रखते हैं। इसलिए, यदि कोई मुद्रा जोड़ी एक अंतराल का अनुभव करती है जहां कीमत उसकी उचित मूल्य से काफी अधिक या कम होती है, तो यह अपेक्षा की जाती है कि कीमत अंततः उस उचित मूल्य पर वापस आ जाएगी

कुछ दूसरे साइकोलॉजी रीज़न –

  1. संस्थागत और बड़े प्लेयर्स की एंट्री-एग्जिट
    बड़ी संस्थागत संस्थाओं या होर्डर ब्लॉकों की वजह से तेज मूव होते हैं। ये बड़ी संस्थाएं मार्केट में अचानक ऑर्डर डालकर प्राइस को त्वरित दिशा में ले जाती हैं।
    छोटे निवेशक अक्सर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे पाते, जिससे यह गैप बनता है। बाद में प्राइस वापस आकर इस गैप को “फिल” करता है क्योंकि मार्केट उसे फेयर वैल्यू पर लाना चाहता है.
  2. भावनात्मक प्रतिक्रिया
    ट्रेडर सोचते हैं कि जब कोई प्राइस रेंज बिना ट्रेडिंग के छोड़ दी गई हो, तो मार्केट को उस क्षेत्र में वापस जाना चाहिए।
    यह मनोवैज्ञानिक “असमानता को पूरा करने” की प्रवृत्ति है – जैसे बाजार में बैलेंस फिर से स्थापित करना। इसलिए, FVG पर प्राइस अक्सर रिवर्स या रिट्रेस करता है.
  3. ट्रेडिंग में भरोसा और जोखिम प्रबंधन
    FVG की पहचान से ट्रेडर को ऐसा ज़ोन मिलता है जहाँ वे कम जोखिम लेकर एंट्री कर सकते हैं क्योंकि वहाँ सारा इन्फॉर्मेशन असंतुलन का था जिसका सुधार होना बाकी था।
    यह मनोवैज्ञानिक रूप से व्यापारियों को आत्मविश्वास और स्पष्टता देता है कि वे सही जगह इन्वेस्ट कर रहे हैं

सारांश:

फेयर वैल्यू गैप ट्रेडिंग के पीछे की मनोविज्ञान बाजार में एक असंतुलित स्थिति को पहचानना और उस स्थिति को सुधारने के लिए प्राइस के वापस लौटने की उम्मीद पर आधारित है। यह संस्थागत ट्रेडिंग की तीव्रता, मनोवैज्ञानिक संतुलन और जोखिम प्रबंधन से जुड़ा है

YouTube चैनल से कमाई होने पर इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करना ?

YouTube इनकम की टैक्स कैटेगरी

YouTube से होने वाली इनकम को भारत में आमतौर पर “व्यवसाय या प्रोफेशनल इनकम” की श्रेणी में रखा जाता है और यह सामान्य टैक्स स्लैब दरों के अनुसार टैक्सेबल होती है। इसमें google एडसेंस, ब्रांड स्पॉन्सरशिप, एफिलिएट या अन्य डिजिटल बिक्री से कमाई शामिल हो सकती है।

आज बड़ी संख्या में लोग यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए कमाई कर रहे हैं। इस कमाई को इनकम टैक्स रिटर्न में बताना जरूरी है। लेकिन, इसकी रिपोर्टिंग का तरीका कम ही लोग जानते हैं। अगर आपने यूट्यूबल चैनल से कमाई के बारे में ठीक तरह से इनकम टैक्स रिटर्न में नहीं बताया तो आपको नोटिस आ सकता है।

ऐसे मेंयूट्यूबर कंटेंट बनाने में आए खर्च पर डिडक्शन क्लेम कर सकता है। कंटेंट तैयार करने में कमैरा जैसे इक्विपमेंट का इस्तेमाल होता है। एडिटिंग के लिए सॉफ्टेवयर का इस्तेमाल होता है। इंटरनेट के लिए पेमेंट करना पड़ता है। आपको स्टूडियो भी रेंट पर लेना पड़ सकता है। ऐसे खर्चों पर डिडक्शन क्लेम करने से टैक्सेबल इनकम काफी घट जाता है |

इनकम और खर्च का हिसाब रखना होगा

यूट्यूब और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से होने वाली इनकम का रिकार्ड रखना जरूरी है। इसके अलावा कंटेंट बनाने में होने वाला खर्च का हिसाब रखना भी जरूरी है। यूट्यूबर्स और इनफ्लूएंसर्स आईटीआर में अपनी इनकम बिजनेस और प्रोफेशन से हुई इनकम के रूप में दिखा सकते हैं। यूट्यूब या दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हुई इनकम प्रोफेशनल इनकम मानी जा सकती है। अगर कोई मर्चेंडाइज की बिक्री से पैसे कमाता है तो इसे बिजनेस इनकम माना जाएगा।

सही ITR फॉर्म का चयन

  • यदि YouTube से होने वाली कमाई व्यवसाय या पेशे के अंतर्गत है और आय ₹2 करोड़ तक है, तो आप ITR-3 या ITR-4 फॉर्म फाइल कर सकते हैं।
  • ITR-3 उन लोगों के लिए है जो व्यावसायिक या प्रोफेशनल इनकम के लिए विस्तृत विवरण देना चाहते हैं।
  • ITR-4 (Sugam) उन छोटे व्यवसायियों के लिए है जो साधारण टैक्सेशन (प्रेसम्प्टिव टैक्सेशन) विकल्प चुनते हैं, जिसमें कुल कमाई का 6% इनकम मानकर टैक्स जमा किया जाता है और खर्चों का अलग दावा नहीं होता।

खर्चे और कटौती

YouTube व्यवसाय से जुड़े खर्चे जैसे कैमरा, माइक्रोफोन, एडिटिंग सॉफ्टवेयर, इंटरनेट आदि का खर्चा आय से घटाया जा सकता है अगर आप ITR-3 या नियमित व्यवसाय टैक्सेशन चुनते हैं। प्रेसम्प्टिव टैक्सेशन में ऐसा खर्चा नहीं दिखाना होता।

GST भी लागू हो सकता है

अगर YouTube से आपकी कमाई सेवा के रूप में 20 लाख रुपए से ऊपर है, तो आपको GST रजिस्ट्रेशन कराना पड़ सकता है। इसकी दर सामान्यत: 18% होती है।

टैक्स रिटर्न कैसे फाइल करें

  1. अपने कुल आय की जानकारी (YouTube से आय, अन्य स्रोतों से आय) इकट्ठा करें।
  2. खर्चों के बिल, बैंक स्टेटमेंट, आदि तैयार रखें।
  3. ऑनलाइन इनकम टैक्स पोर्टल पर लॉगिन करें।
  4. सही ITR फॉर्म (ITR-3 या ITR-4) चुनें।
  5. अपनी आय और खर्चों की सही जानकारी डालें।
  6. टैक्स की गणना करें, यदि टैक्स पहले से एडवांस या TDS के रूप में दिया है तो उसका विवरण भरें।
  7. रिटर्न सबमिट करें और ई-वेरिफिकेशन (ऑनलाइन माध्यम से) कराएं।

महत्वपूर्ण तिथियाँ और नियम

  • वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए रिटर्न फाइलिंग की अंतिम तिथि 15 सितंबर 2025 है।
  • अगर टैक्स देय ₹10,000 से ऊपर है तो एडवांस टैक्स चुकाना जरूरी होता है।
  • किसी भी ₹20,000 से अधिक के गिफ्ट या ब्रांड से मिलने वाले लाभ पर TDS कटौती हो सकती है

GST Reforms से इकॉनमी पे क्या असर पड़ेगा ?

GST सुधारों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, खासकर उपभोक्ता खर्च (consumption) को बढ़ावा देने में। नए GST सुधारों के तहत टैक्स स्लैब्स को सरल बनाकर और जरूरी वस्तुओं पर टैक्स दरें कम करके उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ कम किया जाएगा, जिससे उनकी क्रय क्षमता बढ़ेगी। इससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी और GDP वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

इसके साथ ही व्यवसायों के लिए भी चीजें आसान बनाने की कोशिश है. 5% और 18% की नई टैक्स स्लैब्स साथ-साथ हानिकारक और लग्जरी वस्तुओं के लिए 40% की दर वाला यह नया टैक्स स्ट्रक्चर उपभोक्ता खर्च और आर्थिक विकास को बढ़ाने के अलावा मिडिल क्लास और एमएसएमई को राहत प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है |

जीडीपी पर क्या असर पड़ेगा

  • उपभोक्ता खर्च (Consumption): रोजमर्रा की वस्तुओं, पैकेज्ड फूड आइटम्स और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सहित अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं पर जीएसटी दरें कम करने से उपभोक्ताओं के लिए कीमतें सीधे तौर पर कम हो जाएंगी, जो खर्च और मांग को बढ़ावा देंगी , भारत की GDP में उपभोक्ता खर्च लगभग 60% होता है, इसलिए यह सुधार सीधे GDP को 0.3% से 0.7% (30-70 बेसिस प्वाइंट) तक बढ़ा सकता है।
  • औपचारिक अर्थव्यवस्था (Formal Economy): टैक्स स्लैब simplification और बेहतर प्रशासन से अधिक व्यवसाय GST के दायरे में आएंगे, जिससे औपचारिक अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा।
  • आसान टैक्स स्ट्रक्चर : ज्यादातर वस्तुओं और सर्विसेज के लिए चार स्लैब से दो स्लैब फ्रेमवर्क (5% और 18%) में बदलाव से प्रोसेस आसान होने और भारत में व्यापार करने में आसानी में सुधार होने की उम्मीद है.सुधारों के कारण कर ( Tax )अनुपालन आसान और कम महंगा होगा, जिससे इनका विकास बढ़ेगा।
  • सरकारी राजस्व और वित्तीय स्थिति (Revenue and Fiscal Health):
  • शुरुआती चरण में कुछ राजस्व में कमी हो सकती है, लेकिन दीर्घकाल में कर संग्रह में वृद्धि की उम्मीद है। GST के दो-स्तरीय सुधार से सरकार के राजस्व घाटे की संभावना है, खासकर केंद्र सरकार के लिए। हाल की रिपोर्ट्स और विश्लेषणों के अनुसार, GST की दरों में कटौती के कारण भारत सरकार को सालाना कम से कम 3,700 करोड़ रुपये से लेकर 48,000 करोड़ रुपये तक का राजस्व घाटा हो सकता है। कुछ विश्लेषणों में यह घाटा 10,000 करोड़ से ऊपर भी अनुमानित है इससे सरकार का वित्तीय घाटा थोड़ा प्रभावित हो सकता है, लेकिन सुधार स्थायी और प्रगतिशील होंगे।

संक्षेप में –

  • GST सुधार उपभोक्ता खर्च को सबसे ज्यादा प्रभावित करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी।
  • छोटे व्यवसाय और औपचारिक क्षेत्र को लाभ मिलेगा।
  • सरकार को राजस्व का कुछ हिस्सा कम मिलेगा लेकिन कुल मिलाकर आर्थिक वृद्धि बढ़ेगी।

कब लागू होंगी gst की नई दरें : नई जीएसटी दरें 22 सितंबर, 2025 से प्रभावी होंगी.

सेक्टर्स को फायदा 

खाद्य और घरेलू वस्तुएं:
रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं जैसे साबुन, टूथपेस्ट, ब्रेड, पैकेज्ड फूड आदि पर GST दर 5% हो जाएगी, जिससे उपभोक्ताओं को रियायत मिलेगी और इन वस्तुओं की मांग बढ़ेगी।

इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता वस्तुएं:
टीवी, एयर कंडीशनर, डिशवॉशर, छोटे घरेलू उपकरणों पर GST 18% से कम होकर अधिक वहनीय होगी। इससे इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और बिक्री में बढ़ोतरी होगी।

गृह निर्माण और निर्माण सामग्री:सीमेंट और अन्य निर्माण सामग्री पर GST दर कम होने से हाउसिंग सेक्टर को मजबूती मिलेगी, निर्माण की लागत घटेगी और नया निवेश बढ़ेगा।
ऑटोमोबाइल सेक्टर:
वाहन और ऑटो पार्ट्स के लिए स्पष्ट कर वर्गीकरण और टैक्स दरों में बदलाव से विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
कृषि और स्वास्थ्य:
कृषि आधारित उत्पादों और स्वास्थ्य सेवाओं पर टैक्स में छूट और सुधार से ये सेक्टर्स और भी प्रतिस्पर्धी बनेंगे।
एमएसएमई और स्टार्टअप:
अनुपालन और टैक्स भरने में आसानी आने से छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स को लाभ होगा, जिससे उनकी आर्थिक गतिविधि बढ़ेगी।

क्रेडिट कार्ड कैसे काम करता है ?

क्रेडिट कार्ड काम कैसे करता है , लेकिन उससे पहले ये जानते है कि क्रेडिट कार्ड होता क्या है |

क्रेडिट कार्ड एक भुगतान कार्ड है, जो आमतौर पर बैंक द्वारा जारी किया जाता है, जो अपने उपयोगकर्ताओं को सामान या सेवाएं खरीदने या क्रेडिट पर नकदी निकालने की अनुमति देता है। इस प्रकार कार्ड का उपयोग करने पर कर्ज़ चढ़ जाता है जिसे बाद में चुकाना पड़ता है। क्रेडिट कार्ड का अर्थ एक वित्तीय टूल है जो बैंक द्वारा जारी किया जाता है। इसका उपयोग कर आप अपने पर्सनल खर्चों, ऑनलाइन खरीददारी, यात्रा आदि के लिए कहीं भी व कभी भी कर सकते हैं।

क्रेडिट कार्ड का सही तरीके से उपयोग आपको आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। आइए जानते है कि क्रेडिट कार्ड कैसे काम करता है:

  1. क्रेडिट लिमिट: बैंक या कार्ड जारीकर्ता आपकी क्रेडिट योग्यता के आधार पर एक सीमा निर्धारित करता है, जिसे क्रेडिट लिमिट कहते हैं। आप इस लिमिट के अंदर ही खर्च कर सकते हैं।
  2. खरीदारी: जब आप क्रेडिट कार्ड से कोई सामान या सेवा खरीदते हैं, तो आपका कार्ड नंबर व्यापारी के बैंक को भेजा जाता है। यह बैंक क्रेडिट कार्ड नेटवर्क के माध्यम से आपकी जानकारी करदाता बैंक (कार्ड जारीकर्ता) को भेजता है।
  3. लेन-देन की पुष्टि: कार्ड जारीकर्ता बैंक आपके खाते की क्रेडिट लिमिट और अन्य विवरण जांच कर लेन-देन को स्वीकृत या अस्वीकृत करता है।
  4. ब्याज मुक्त अवधि: क्रेडिट कार्ड में आमतौर पर 40-50 दिनों का बिलिंग साइकिल होता है, जिसमें अगर आप पूरा बिल समय पर चुकाते हैं तो ब्याज नहीं लगता।
  5. बिल और भुगतान: हर महीने आपको क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट प्राप्त होता है जिसमें आपके कुल खर्चे, शेष राशि, न्यूनतम भुगतान राशि और भुगतान की अंतिम तिथि होती है। आप तय दिन तक भुगतान कर सकते हैं या कम से कम न्यूनतम राशि चुका सकते हैं।
  6. ब्याज: अगर आप पूरा बिल समय पर नहीं चुकाते हैं तो शेष राशि पर ब्याज लगना शुरू हो जाता है, जो आमतौर पर 35%-40% और ज्यादा भी हो सकता है ये डिपेंड करता है उस बैंक पर जो क्रेडिट देता है आपको ।
  7. कैश एडवांस: क्रेडिट कार्ड के माध्यम से आप नकद भी निकाल सकते हैं, लेकिन कैश एडवांस पर ब्याज तुरंत लगना शुरू हो जाता है और यह सामान्य खर्च की तुलना में अधिक महंगा पड़ता है।
  8. रिवॉर्ड और कैशबैक: कई क्रेडिट कार्ड रिवार्ड पॉइंट, कैशबैक और अन्य लाभ भी देते हैं, जैसे खाने-पीने, ट्रैवल, या शॉपिंग पर छूट।

व्यावहारिक उदाहरण के साथ समझिये:

  1. क्रेडिट लिमिट मिली:
    मान लीजिए बैंक ने आपको 50,000 रुपये का क्रेडिट कार्ड दिया है। इसका मतलब है कि आप अधिकतम 50,000 रुपये तक का खर्च कर सकते हैं।
  2. खरीदारी करना:
    आप कहीं कपड़े खरीदने जाते हैं और 10,000 रुपये के कपड़े खरीदते हैं। आप अपने क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करते हैं।
  3. लेन-देन प्रोसेसिंग:
    आपके क्रेडिट कार्ड की जानकारी (जैसे कार्ड नंबर, एक्सपायर डेट, CVV) दुकान के बैंक को भेजी जाती है।
    बैंक आपकी क्रेडिट लिमिट और डिटेल्स चेक करता है और अगर सब ठीक हो तो खरीदारी को मंजूरी दे देता है।
  4. बैंक भुगतान करता है दुकानदार को:
    बैंक तुरंत दुकानदार को 10,000 रुपये भेज देता है ताकि आपका सामान फटा-फट मिल सके।
  5. आपका क्रेडिट लिमिट घटती है:
    अब आपकी क्रेडिट लिमिट 50,000 – 10,000 = 40,000 रुपये रह जाती है, यानी आप अगले 40,000 रुपये तक ही खर्च कर सकते हैं।
  6. बिल और भुगतान:
    महीने के अंत में बैंक आपको क्रेडिट कार्ड का एक स्टेटमेंट भेजेगा जिसमें आपकी कुल खर्ची हुई राशि दिखेगी।
    • आपको यह दिखाया जाएगा कि कुल कितना खर्च हुआ (यहाँ 10,000 रुपये)
    • आखिरी तारीख तक पूरा बिल चुकाने पर कोई ब्याज नहीं लगेगा
    • आप चाहे तो न्यूनतम राशि भी चुका सकते हैं, लेकिन शेष राशि पर ब्याज लगेगा
  7. ब्याज मुक्त अवधि:
    आमतौर पर ये अवधि लगभग 40-50 दिन होती है, अगर आप इस अवधि में पूरा बिल चुका देते हैं तो आपको कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं देना पड़ता।
  8. यदि भुगतान समय पर न हुआ:
    अगर आप पूरा या न्यूनतम बिल अंतिम तारीख तक नहीं चुका पाते, तो शेष राशि पर बैंक ब्याज वसूल करेगा।
  9. रिवॉर्ड और कैशबैक:
    कई क्रेडिट कार्ड कंपनियां आपको खर्च पर रिवॉर्ड पॉइंट्स, कैशबैक, छूट और ऑफर्स भी देती हैं। जैसे आपने कुछ खरीदारी की, तो आपको कुछ पैसे वापस मिल सकते हैं या पॉइंट्स जमा हो सकते हैं जिन्हें आप भविष्य में इस्तेमाल कर सकते हैं।
  10. कैश एडवांस:
    क्रेडिट कार्ड से आप एटीएम से नकद भी निकाल सकते हैं, लेकिन कैश एडवांस पर ब्याज तुरंत लगने लगता है जो बहुत अधिक होता है।

इस प्रकार, क्रेडिट कार्ड आपको तुरंत खरीदारी की सुविधा देता है, लेकिन इसका सही इस्तेमाल महत्वपूर्ण है ताकि उधार में ब्याज न बढ़े और क्रेडिट स्कोर भी अच्छा बना रहे।

म्यूच्यूअल फण्ड क्या होता है ?

म्यूचुअल फंड एक निवेश साधन है जिसमें कई निवेशक अपना पैसा एक साथ जमा करते हैं और इस पैसे को पेशेवर फंड मैनेजर के द्वारा शेयरों, बॉन्ड, सरकारी सिक्योरिटी या बाजार के अन्य साधनों में निवेश किया जाता है। फंड मैनेजर अलग-अलग कंपनियों और सेक्टरों के हिसाब से निवेश का फैसला लेतेहैं |

ये पेशेवर रूप से प्रबंधित फंड व्यक्तियों को स्टॉक, बॉन्ड और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स सहित विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश करने का एक तरीका प्रदान करते हैं |

आसान भाषा में और साधारण उदाहरण में –

मान लीजिए गाँव के 10 लोग एक साथ पैसा इकट्ठा करते हैं, हर किसी के पास थोड़ा-थोड़ा पैसा है, किसी के पास 100 रुपए, किसी के पास 500 रुपए, किसी के पास 1000 रुपए। सब लोग अपना-अपना पैसा इकट्ठा कर के कुल मिला के एक बड़ा थैला भर लेते हैं।

अब गांव के सबसे समझदार, भरोसेमंद और पढ़े-लिखे आदमी को बोलते हैं – “भाई, यह हमारा पैसा ले जा और इस पैसे को शहर में अच्छे धंधों या जगहों पर लगा दो , जिससे हमें फायदा हो और हमारा पैसा बढ़े।” वह शख्स जाता है, अलग-अलग धंधों में या चीज़ों में थोड़ा-थोड़ा पैसा लगाता है, समझदारी से। जो भी मुनाफा (फायदा) या नुक़सान होता है, सब को उनके हिस्से के हिसाब से बांट देता है।

असली दुनिया में कैसे होता है?

  • म्यूचुअल फंड का मतलब है – बहुत सारे लोग थोड़ा-थोड़ा पैसा जमा करते हैं।
  • कंपनी या बैंक उस पैसे को अलग-अलग कंपनियों के शेयर, बांड, या दूसरी जगह लगाती है।
  • मुनाफा या नुक़सान सबको बराबर-बराबर उनके हिस्से के हिसाब से मिलता है।

म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है?

  • सभी निवेशकों का पैसा एकत्रित कर “Asset Management Company (AMC)” एक फंड बनाती है।
  • फंड मैनेजर इस रकम को शेयर, बॉन्ड, आदि में निवेश करता है।
  • बदले में निवेशकों को म्यूचुअल फंड की यूनिट्स मिलती हैं, हर यूनिट की कीमत NAV (Net Asset Value) कहलाती है।
  • निवेश से मिलने वाला मुनाफा (profit) – डिविडेंड, ब्याज या कैपिटल गेन – फंड यूनिट्स के मालिकों में बाँट दिया जाता है।
  • निवेशक जब अपनी यूनिट्स बेचते हैं तो उसी हिसाब से पैसा (मुनाफा या घाटा) मिल जाता है।

म्यूचुअल फंड में निवेश के तरीके

निवेशक दो लोकप्रिय तरीकों से म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।

  • एकमुश्त: जब आप म्यूचुअल फंड को एक बड़ा भुगतान करते हैं, तो दिन के एनएवी मूल्य के आधार पर आपको यूनिटें आवटित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि उस दिन फंड का एनएवी 50 रुपये है तो आपको 10,000 रुपये के एकमुश्त निवेश के लिए 200 इकाइयाँ आवंटित की जाएंगी।
  • एसआईपी: एसआईपी में आप फंड में नियमित निवेश करते हैं। ये हर महीने भुगतान की जाने वाली छोटी निश्चित किस्तें हैं, और यूनिटें उस दिन के एनएवी मूल्य के आधार पर आवंटित की जाती हैं। एक व्यवस्थित निवेश योजना नियमित निवेश प्रथाओं को प्रोत्साहित करती है और बाजार के लिए समय की आवश्यकता को समाप्त करती है। 

म्यूचुअल फंड में निवेश कैसे करें?

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के 3 सामान्य तरीके हैं।

म्यूचुअल फंड कंपनी की वेबसाइट के माध्यम सेउस स्थिति में, आपको उनकी वेबसाइट पर पंजीकरण करना होगा और एक खाता बनाना होगा। हालाँकि, यदि आप विभिन्न कंपनियों के कई फंडों में निवेश करना चाहते हैं तो यह तरीका अप्रभावी हो सकता है। 

बैंकों के माध्यम से:कभीकभी आपका बैंक आपको अपने नेट बैंकिंग या मोबाइल बैंकिंग प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध फंड में निवेश करने की अनुमति देता है। लेकिन यह संभावित योजनाओं की खोज करने की आपकी क्षमता को सीमित कर सकता है क्योंकि बैंक केवल सीमित संख्या में  फंड  को बढ़ावा दे सकता है।

ब्रोकर के माध्यम से – जैसे एंजेल वन ,ग्रो , ज़ेरोदा ,उपटॉस्क और मोतीलाल ओसवाल जैसे ब्रोकर की सहायता से भी आप म्यूच्यूअल फन में निवेश कर सकते है।

म्यूचुअल फंड के फायदे

  • पेशेवर प्रबंधन: निवेश को अनुभवी फंड मैनेजर द्वारा संभाला जाता है।
  • विविधता (Diversification): पैसा कई कंपनियों या उत्पादों में बंट जाता है जिससे जोखिम कम होता है।
  • कम पूंजी से निवेश: आप कम रकम से भी निवेश शुरू कर सकते हैं।
  • तरलता (Liquidity): यूनिट्स को कभी भी बेचा जा सकता है और आसानी से पैसा मिल जाता है।

म्यूचुअल फंड के नुकसान

म्यूचुअल फंड के फायदे के साथ–साथ नुकसान को समझकर आप सोच–समझकर निर्णय ले सकेंगे।

  1. उतारचढ़ाव वाला रिटर्न: जो लोग निवेश पर निश्चित रिटर्न पसंद करते हैं उन्हें म्यूचुअल फंड के रिटर्न से निराशा हो सकती है। म्यूचुअल फंड निश्चित रिटर्न की पेशकश नहीं करते हैं और जोखिम से बचने वाले निवेशकों को आकर्षित नहीं कर सकते हैं। 
  2. शुल्क और व्ययम्यूचुअल फंड निवेश में प्रबंधन शुल्क, परिचालन व्यय और बिक्री भार जैसे शुल्क शामिल होते हैं। ये लागतें निवेशक के शुद्ध लाभ को कम कर सकती हैं।
  3. विविधीकरणविविधीकरण को हमेशा म्यूचुअल फंड के प्रमुख लाभ के रूप में उद्धृत किया जाता है, लेकिन अत्यधिक विविधीकरण आपके समग्र लाभ को कम कर सकता है। संभावना बढ़ जाती है क्योंकि आपका अपने पोर्टफोलियो पर नियंत्रण कम होता है।
  4. फंड मूल्यांकनकुछ निवेशकों को फंड – प्रदर्शन, एनएवी आदि की तुलना करना मुश्किल हो सकता है। यदि आप पूरी तरह से नए निवेशक हैं तो आपको म्यूचुअल फंड जटिल लग सकता है।
  5. एक्ज़िट लोड: जब आप एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर अपनी इकाइयों को भुनाते हैं तो फंड हाउस शुल्क लेगा। ये शुल्क फंड से बारबार निकासी को हतोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, लेकिन अंततः, वे फंड तक आपकी पहुंच को सीमित कर देंगे। 
  6. पिछला प्रदर्शनफंड के पिछले प्रदर्शन का मूल्यांकन एक सामान्य निर्णय लेने वाला कारक है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मजबूत पिछला प्रदर्शन भविष्य के प्रदर्शन की गारंटी नहीं देता है। 
  7. मैनेजर का प्रदर्शनफंड पर रिटर्न फंड मैनेजर के अनुभव और निर्णय पर निर्भर करता है। 
  8. पूंजीगत लाभ करनिवेश से प्राप्त लाभ पूंजीगत लाभ कर नियमों के अनुसार कर के अधीन है और इसके परिणामस्वरूप निवेशक के लिए कर दायित्व बढ़ सकता है। 

प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना (PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana)


पीएम सूर्य घर मुफ्त ब‍िजली योजना क्‍या है?

PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana: केंद्र सरकार की इस खास योजना का फायदा उठाकर आप ब‍िजली के मोटे ब‍िलों से छुटकारा पा सकते हैं। प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त ब‍िजली योजना के तहत आप अपने घर की छत पर सोलर पैनल लगवा सकते हैं। इसके ल‍िए सरकार सब्‍स‍िडी भी देती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 फरवरी, 2024 को देश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने और विदेशों पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से दुनिया की सबसे बड़ी घरेलू रूफटॉप सौर योजना पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत सोलर पैनल लगवाने के लिए सब्सिडी देने का प्रावधान रखा गया।

सोलर पैनल लगवाने के बाद आप 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली पा सकते हैं। यही नहीं अगर ज्यादा बिजली पैदा होती है तो उसे सरकार को बेचकर पैसा भी कमाया जा सकता है। इस योजना के तहत सरकार ने साल 2027 तक एक करोड़ सोलर पैनल लगाने का लक्ष्य बनाया। एक करोड़ परिवारों को लाभ पहुंचाने के लक्ष्य के साथ सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से हर साल 75,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। साथ ही इस योजना से कार्बन फुटप्रिंट भी कम करने में मदद मिलेगी।

पीएम-सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना संबंधी मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा फरवरी 2024 में शुरू की गई पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना का उद्देश्य छतों पर सौर पैनल संस्थापित कर एक करोड़ घरों को मुफ्त बिजली उपलब्ध कराना है।
  • इस योजना का परिव्यय 75,021 करोड़ रुपए है और इसे वित्त वर्ष 2026-27 तक लागू किया जाना है।
  • इसके अंतर्गत प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान की जाती है तथा संस्थापना लागत के लिये 40% तक सब्सिडी प्रदान की जाती है, जिससे संपूर्ण देश में सौर ऊर्जा को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा मिलता है।

योजना की पात्रता

  • नागरिकता: आवेदक भारतीय नागरिक होना चाहिए।
  • आयु: न्यूनतम 18 वर्ष।
  • घर: वैध मकान का मालिक होना चाहिए, छत पर जगह होनी चाहिए, और बिजली का वैध कनेक्शन होना चाहिए।
  • आय सीमा: सालाना आय ₹6 लाख तक (मुख्य रूप से प्राथमिकता)।
  • पहले कोई सब्सिडी न ली हो: पहले सोलर सब्सिडी का लाभ न लिया हो।

योजना के लाभ

  • मुफ्त बिजली: हर महीने 300 यूनिट तक हर घर को बिजली मुफ्त।
  • सब्सिडी:
    • 1–2 किलोवाट पैनल के लिए ₹30,000 प्रति kW की सब्सिडी (2 kW तक कुल ₹60,000)।
    • 2-3 kW के बाद हर kW पर ₹18,000 अतिरिक्त (3 kW तक ₹78,000)।
    • दिल्ली में अतिरिक्त ₹30,000 सब्सिडी राज्य सरकार की ओर से।
  • लोन: पैनल इंस्टालेशन के लिए रियायती बैंक लोन की सुविधा।
  • अन्य लाभ: बची हुई बिजली सरकार को बेच सकते हैं; रोज़गार और तकनीकी कौशल में बढ़ोतरी।

आवेदन प्रक्रिया

ऑनलाइन आवेदन: आधिकारिक पोर्टल https://pmsuryaghar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करें।

हेल्पलाइन: 15555

GST सुधारों से आम जनता को सीधे क्या लाभ होंगे ?

लघु उद्योग भारती (एलयूबी) संगठन ने जीएसटी परिषद की अनुमोदित नई सरलीकृत कर संरचना का स्वागत किया है। संगठन ने कहा कि 22 सितंबर से लागू होने वाले 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के दो-स्तरीय जीएसटी स्लैब भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी बदलाव साबित होंगे।

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) में नए सुधारों से आम लोगों की जेब को बड़ी राहत मिलेगी. 3 सितंबर को 56वीं GST काउंसिल की बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में नया टैक्स स्ट्रक्चर मंजूर किया गया. अब केवल दो मुख्य स्लैब – 5% और 18% – होंगे. साथ ही हानिकारक सामानों पर 40% का विशेष टैक्स लगेगा.

उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ेगी: टैक्स स्लैब को दो में सीमित करने और सुधार से उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती होंगी, जिससे खरीद क्षमता बढ़ेगी।

कीमतों में कमी से राहत: जीएसटी दरों को कई आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर कम कर दिया गया है, जिससे खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएं, सीमेंट, कृषि उपकरण आदि सस्ते होंगे और आम आदमी की दैनिक जरूरतों पर खर्च कम होगा।

रोज़गार और आर्थिक विकास में योगदान: सस्ती वस्तुओं की अधिक मांग से उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

स्वास्थ्य सेवाओं की सस्ती उपलब्धता: जीवन रक्षक दवाओं और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी हटने से स्वास्थ्य संबंधी खर्च कम होंगे।

कृषि व छोटे उद्योगों को लाभ: खेती से जुड़े उपकरण और छोटे उद्योगों पर टैक्स कटौती से किसान और छोटे कारोबारियों को राहत मिलेगी।

डेयरी किसानों को होगा फायदा

सरकार ने खेती में इस्तेमाल होने वाली चीजों और डेयरी उत्पादों पर जीएसटी की दरें कम कर दी हैं। इससे किसानों को बहुत मदद मिलेगी। कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CLFMA) के अध्यक्ष दिव्या कुमार गुलाटी ने डेयरी प्रोडक्ट पर टैक्स कम करने को प्रगतिशील कदम बताया। उन्होंने कहा कि इससे भारत के 8 करोड़ डेयरी किसानों को फायदा होगा।

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