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मुद्रा (Currency) कैसे काम करती है,देश की Economy पर करेंसी कैसे प्रभाव डालती है?

करेंसी (जैसे भारत में रुपया, अमेरिका में डॉलर) एक तरह का विश्वास-पत्र है।

करेंसी (जैसे रुपया, डॉलर या यूरो) एक देश का पैसा होता है। ये सरकार या केंद्रीय बैंक (जैसे भारत में RBI) द्वारा बनाई और जारी की जाती है

किसी देश की करेंसी (मुद्रा) कैसे काम करती है? –

मुद्रा किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था में लेन-देन का सबसे मुख्य साधन होती है।

खरीद-बिक्री के लिए: लोग इसे दुकानों पर सामान खरीदने, सैलरी लेने या व्यापार करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये एक “मीडियम ऑफ एक्सचेंज” है, यानी दो चीजें बदलने की बजाय पैसा इस्तेमाल करके आसानी से ट्रांजेक्शन होता है। यह चीजों और सेवाओं को खरीदने और बेचने का सबसे आसान तरीका है। आप पैसे देकर सामान खरीदते हैं।

मूल्य का मापन: यह बताता है कि किसी चीज की कीमत कितनी है। जैसे, एक पेन ₹10 का है।

मूल्य कैसे तय होता है: करेंसी की वैल्यू दूसरे देशों की करेंसी से तुलना करके तय होती है। जैसे, 1 डॉलर = 88रुपये। ये वैल्यू बाजार में “फॉरेक्स मार्केट” में सप्लाई (कितना पैसा उपलब्ध है) और डिमांड (कितना लोग खरीदना चाहते हैं) से बदलती रहती है। अगर ज्यादा लोग डॉलर खरीदना चाहें, तो डॉलर महंगा हो जाता है।

डिजिटल और फिजिकल: आजकल ज्यादातर करेंसी डिजिटल होती है (बैंक अकाउंट में), लेकिन नोट और सिक्के भी चलते हैं। केंद्रीय बैंक इसे प्रिंट करके या डिजिटल तरीके से जारी करता है, लेकिन ज्यादा प्रिंट करने से वैल्यू कम हो सकती है।

भविष्य के लिए बचाना: लोग इसे बचाकर रखते हैं ताकि भविष्य में इसका इस्तेमाल कर सकें।

सरकार और केंद्रीय बैंक का नियंत्रण: देश की सरकार (जैसे भारत में RBI) ही यह तय करती है कि कितनी करेंसी छापनी है और उसे कैसे मैनेज करना है।

करेंसी एक ऐसा माध्यम है जिस पर देश के सभी लोगों को भरोसा होता है कि इसके बदले में उन्हें चीजें मिलेंगी।

मुद्रा की स्थिरता क्या है और कैसे तय होती है?

करेंसी की स्थिरता का मतलब है कि उसकी कीमत (दूसरे देशों की करेंसी के मुकाबले) बहुत ज्यादा न बदले। यह मुख्य रूप से डिमांड (मांग) और सप्लाई (आपूर्ति) के सिद्धांत पर तय होती है, जिसे विनिमय दर (Exchange Rate) कहते हैं।

डिमांड (मांग): अगर कोई देश आर्थिक रूप से मजबूत है और लोग उसका सामान या उसकी संपत्ति खरीदना चाहते हैं, तो उन्हें उस देश की करेंसी चाहिए होगी। मांग बढ़ेगी तो करेंसी मजबूत होगी।

सप्लाई (आपूर्ति): अगर सरकार बहुत ज्यादा करेंसी छाप देती है, तो उसकी सप्लाई बढ़ जाती है। सप्लाई बढ़ेगी तो करेंसी कमजोर होगी।

उदाहरण: जब किसी अमेरिकी कंपनी को भारत में निवेश करना होता है, तो उसे डॉलर के बदले रुपया चाहिए होता है, जिससे रुपये की मांग बढ़ती है और वह मजबूत होता है।

मुख्य तरीका: इंटरेस्ट रेट (ब्याज दर) बदलना। अगर महंगाई बढ़े, तो ब्याज बढ़ाकर पैसे की सप्लाई कम करते हैं, ताकि लोग कम उधार लें और खर्च कम करें।

अन्य तरीके: करेंसी रिजर्व (विदेशी पैसा रखना), ट्रेड बैलेंस (निर्यात-आयात संतुलन) और आर्थिक नीतियां। स्थिरता अच्छी हो तो लोग भरोसा करते हैं, निवेश बढ़ता है।

देश की इकोनॉमी पर करेंसी कैसे प्रभाव डालती है?

करेंसी का मजबूत या कमजोर होना अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालता है

करेंसी इकोनॉमी का बड़ा हिस्सा है। ये दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं – जैसे चक्र (सर्कल)।

मुद्रा को कौन से कारण प्रभावित करते हैं?

करेंसी की वैल्यू ऊपर-नीचे होने के कई कारण होते हैं।

विश्व करेंसी में कोई देश कैसे डोमिनेट करता है?

विश्व करेंसी पर किसी देश का हावी होना उसकी आर्थिक शक्ति और भरोसे पर निर्भर करता है। अमेरिका का डॉलर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। दुनिया में कुछ करेंसी “रिजर्व करेंसी” कहलाती हैं, यानी दूसरे देश इन्हें बचत के लिए रखते हैं। अमेरिका का डॉलर सबसे बड़ा डोमिनेटर है (60% से ज्यादा वैश्विक ट्रेड डॉलर में)।

जो देश अपनी करेंसी में ज्यादा व्यापार और विश्वसनीयता बना लेते हैं, वे विश्व करेंसी पर हावी हो जाते हैं।

अगर भारत अमेरिका से मोबाइल खरीदता है, तो भुगतान डॉलर में होता है।
इसलिए भारत को डॉलर की ज़रूरत होती है — और वो निर्यात (export) बढ़ाता है ताकि माल बेचकर डॉलर कमा सके।
अगर रुपया कमज़ोर हो गया, तो भारत के लिए मोबाइल महंगे पड़ जाएंगे।
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