ये वो पैसा है जो कंपनी के मालिक खुद लगाते हैं।
वो पैसा होता है जो किसी कंपनी के मालिक या शेयरधारक (shareholders) खुद लगाते हैं। यह दिखाता है कि कंपनी में उनका कितना ownership (मालिकी) है। इसे कंपनी का अपना पैसा भी कह सकते हैं, जो कर्ज (loan) से लिया गया पैसा नहीं होता। जब आप किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी के कुछ हिस्से के मालिक बन जाते हैं और जो पैसा आप लगाते हैं, वह इक्विटी कैपिटल का हिस्सा बन जाता है।
अगर कंपनी मुनाफा कमाती है, तो इन मालिकों को उसका फायदा (dividend या शेयर का दाम बढ़ना) मिलता है।

बैलेंस शीट में इक्विटी कैपिटल कहाँ दिखता है?
बैलेंस शीट में दो हिस्से होते हैं:–
1.संपत्ति (Assets): कंपनी के पास क्या-क्या चीज़ है – जैसे जमीन, मशीन, कैश, आदि
2.देनदारी और पूंजी (Liabilities & Equity): कंपनी का कितना कर्ज है और मालिकों का कितना पैसा लगा हुआ
Balance Sheet पर इक्विटी कैपिटल को कैसे समझें?
बैलेंस शीट एक तरह का financial snapshot (वित्तीय तस्वीर) होती है जो बताती है कि एक खास तारीख पर किसी कंपनी के पास क्या है (assets), उस पर क्या कर्ज है (liabilities), और उसका अपना पैसा कितना है (equity)।
जैसे तुम्हारे घर की डायरी में लिखा कि कितना सामान है, कितना कर्ज है, और कितना अपना पैसा बचा है।
बैलेंस शीट में इक्विटी कैपिटल को पढ़ते हैं तो हमें कई बातें पता चलती हैं
- मालिकों का हिस्सा: इक्विटी कैपिटल बताता है कि कंपनी में मालिकों ने कितना अपना पैसा लगाया है। जैसे, अगर राम ने अपनी दुकान में 1 लाख रुपये लगाए, तो ये उसका हिस्सा है। इससे पता चलता है कि कंपनी कितनी अपने पैरों पर खड़ी है।
- कंपनी की ताकत: ज्यादा इक्विटी का मतलब है कंपनी ज्यादा कर्ज पर निर्भर नहीं है। यानी कंपनी मजबूत है, क्योंकि मालिकों का पैसा ज्यादा है। कम इक्विटी और ज्यादा कर्ज हो तो कंपनी जोखिम में हो सकती है। तो इसका मतलब है कि वह अपने मालिक या शेयरधारकों के पैसे से ज़्यादा चलती है, न कि सिर्फ़ कर्ज़ से। एक बड़ी इक्विटी बेस वाली कंपनी ज़्यादा स्थिर और जोखिमों को झेलने में सक्षम मानी जाती है, क्योंकि उसे कर्ज़ चुकाने का उतना दबाव नहीं होता।
- मुनाफा या घाटा: इक्विटी में बदलाव से पता चलता है कि कंपनी को मुनाफा हो रहा है या घाटा। मुनाफा हुआ तो इक्विटी बढ़ेगी, जैसे राम की दुकान में 20 हजार मुनाफा हुआ तो उसकी इक्विटी 1 लाख से 1.20 लाख हो जाएगी।
- कंपनी का मूल्य: इक्विटी से मालिकों के लिए कंपनी की वैल्यू समझ आती है। अगर कंपनी बिके, तो मालिकों को कर्ज चुकाने के बाद इक्विटी जितना पैसा मिलेगा।
- मालिक और शेयरधारक कितना विश्वास रखते हैं: इक्विटी कैपिटल यह भी दिखाता है कि कंपनी में मालिकों और निवेशकों का कितना पैसा लगा हुआ है। अगर लोग कंपनी में पैसा लगा रहे हैं, तो यह दिखाता है कि उन्हें कंपनी के भविष्य पर भरोसा है। यह निवेशकों के विश्वास का एक संकेत है।
- कंपनी ने कितना मुनाफ़ा कमाया और उसे कैसे इस्तेमाल किया: इक्विटी कैपिटल का एक हिस्सा ‘रिटेन्ड अर्निंग्स’ (Retained Earnings) होता है। यह कंपनी के पिछले सालों का वो मुनाफ़ा है जिसे उसने शेयरधारकों में बांटा नहीं है, बल्कि वापस बिज़नेस में लगा दिया है। यह देखकर हमें पता चलता है कि कंपनी लगातार मुनाफ़ा कमा रही है और अपने मुनाफ़े को अपने विकास के लिए इस्तेमाल कर रही है।
- कंपनी का असली मूल्य क्या है: इक्विटी कैपिटल का कुल मूल्य (या जिसे शेयरहोल्डर्स इक्विटी भी कहते हैं) बताता है कि अगर कंपनी की सारी संपत्तियों को बेच दिया जाए और सारे कर्ज़ चुका दिए जाएं, तो शेयरधारकों के लिए कितना पैसा बचेगा। यह कंपनी के शुद्ध मूल्य (Net Worth) को दर्शाता है।

सरल शब्दों में ,इक्विटी कैपिटल देखकर आप यह जान सकते हैं कि:
- कंपनी खुद के पैसों पर कितना चलती है।
- निवेशक उस पर कितना भरोसा करते हैं।
- कंपनी ने अपने मुनाफ़े का क्या किया।
- कंपनी का असली मूल्य (वास्तविक कीमत) क्या है।
सीधा-साधा उदाहरण –
आपने एक मोबाइल फ़ोन बेचने की दुकान शुरू की।
- ₹20,000 अपने बचाए हुए पैसे लगाए। (यह आपका इक्विटी कैपिटल है)
- ₹10,000 अपने दोस्त से उधार लिए। (यह आपकी देयता या कर्ज़ है)
अब, आपके पास कुल ₹30,000 हैं। इन पैसों से आपने फ़ोन खरीदे।
- आपके पास जो फ़ोन हैं, उनकी कुल कीमत ₹30,000 है। (यह आपकी संपत्ति है)
तो, आपकी बैलेंस शीट ऐसी दिखेगी:
संपत्ति (30,000) = देयता (10,000) + इक्विटी (20,000)
यहाँ, ₹20,000 आपका इक्विटी कैपिटल है। यह दिखाता है कि आपने खुद कितना पैसा बिज़नेस में लगाया है, जो उधार नहीं है।