पूंजीगत व्यय या कैपेक्स क्या है ,सरकार क्यों कैपेक्स बढ़ाते है ?

Capex का मतलब है “Capital Expenditure” यानी पूंजीगत खर्चा। ये वो पैसा होता है जो कोई कंपनी, सरकार या कोई संस्था अपने लंबे समय तक चलने वाले assets (जैसे मशीन, फैक्ट्री, बिल्डिंग, सड़क, या टेक्नोलॉजी) को खरीदने या सुधारने में खर्च करती है।

सरकार और देश के लिए Capex बहुत जरूरी होता है क्योंकि यही खर्चा नई इन्फ्रास्ट्रक्चर (जैसे सड़क, अस्पताल, बिजली, ट्रेन लाइन) बनाने, उद्योगों को बढ़ाने, और देश की आर्थिक ताकत बढ़ाने में काम आता है। जब सरकार या कंपनी Capex बढ़ाती है, तो इससे नए काम पैदा होते हैं, लोग रोजगार पाते हैं, और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।

सरल भाषा में समझें तो, जैसे घर बनाने के लिए ज़मीन खरीदना, ईंट- पत्थर लगाना और मजबूत छत बनाना है तो उसके लिए पैसे खर्च करना पड़ता है , वैसे ही देश को और कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर खर्चा यानी Capex करना पड़ता है।

उदाहरण: अगर सरकार नए हायवे बनाती है या फैक्ट्री खोलती है, तो ये Capex होता है जो भविष्य में देश की प्रगति में मदद करता है। यह खर्चा आमतौर पर लंबे समय तक फायदा देने वाला होता है,

देश की अर्थव्यवस्था पर Capex का असर –

नए रोजगार बनना

जब सरकार या कंपनियां Capex करती हैं, जैसे नई फैक्ट्री, सड़क, या बिजली पावर प्लांट बनाना, तो वहां काम के लिए मजदूर, इंजीनियर, टेक्नीशियन आदि की जरूरत होती है। इससे रोजगार बढ़ते हैं और लोग पैसे कमाने लगते हैं, जिससे उनकी खरीदारी बढ़ती है |

उत्पादन और व्यापार बढ़ता है

Capex से ज्यादा कारखाने, मशीनरी, और संसाधन उपलब्ध होते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है। उत्पादन बढ़ने का मतलब है कि देश में ज्यादा सामान बनेंगे, जिन्हें बेचकर देश की आय बढ़ेगी |

आर्थिक विकास तेज़ होता है

जब Capex बढ़ता है, तो देश की इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर होती है जैसे सड़क, रेलवे, बिजली। इससे व्यापार करना आसान होता है, सामान जल्दी और सस्ते में मिलता है, और निवेश भी बढ़ता है। इससे GDP यानी देश की कुल आर्थिक क्रियाकलाप बढ़ते हैं,Capex करने से देश की आर्थिक ताकत बढ़ती है क्योंकि ये लंबे समय तक चलने वाले संसाधन बनाते हैं जो भविष्य में ज्यादा उत्पादन और सेवाएं देंगे। इस तरह से देश की स्थिर और दीर्घकालिक वृद्धि होती है |

सरकार Capex (पूंजीगत व्यय) को बढ़ाने के लिए तय करती है कि GDP का कितना हिस्सा Capex पर खर्च किया जाएगा |

कुछ Capex बढ़ाने के तरीके –

  1. बजट में आवंटन बढ़ाना: सरकार हर साल अपना बजट बनाती है जिसमें तय करती है कि कुल खर्च में से कितना पैसा Capex पर खर्च होगा। उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 में Capex को 7.5 लाख करोड़ रुपये (लगभग 2.9% GDP) तक बढ़ाया था ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके.
  2. प्राथमिकता तय करना: सरकार विभिन्न क्षेत्रों जैसे सड़क, रेलवे, शहरी विकास, बंदरगाह, और नागरिक उड्डयन में कितना निवेश करना है, यह तय करती है। पिछले समय में सड़क और रेलवे पर अधिक खर्च होता था, लेकिन अब सरकार शहरी बुनियादी ढांचे और एयरलाइंस जैसे नए सेक्टर्स पर भी ध्यान दे रही है.
  3. नीतिगत निर्णय: सरकार Capex बढ़ाने के लिए नई नीतियां बनाती है, जैसे प्राइवेट सेक्टर को निवेश के लिए प्रेरित करना, सप्लाई चेन की समस्याओं को हल करना, और सरकारी खरीद के नियमों में सुधार करना ताकि निवेश प्रक्रिया सुगम हो सके.
  4. पिछले वर्षों का विश्लेषण: सरकार पिछले सालों की आर्थिक स्थिति और विकास की रफ्तार को देखकर Capex का लक्ष्य निर्धारित करती है ताकि अर्थव्यवस्था को बेहतर बढ़ावा मिल सके।

GDP का कितना हिस्सा Capex के लिए खर्च होता है?

देश की सरकारें यह तय करती है कि GDP का कितना हिस्सा Capex पर खर्च किया जाए। उदाहरण के लिए, भारत ने FY 2022-23 में लगभग 2.9% GDP को Capex के लिए रखा और वही FY 2025-2026के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संघीय बजट में पूंजी व्यय लक्ष्य को 10.08% बढ़ाकर 11.21 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव दिया है। यह प्रतिशत देश की आर्थिक जरूरतों और विकास लक्ष्यों के हिसाब से बदलता रहता है |

सरल शब्दों में: – सरकार देश की जरूरत, पैसे की उपलब्धता, और आर्थिक संतुलन का ध्यान रख कर तय करती है कि GDP का कितना हिस्सा कैपेक्स में लगाया जाए ताकि देश की समृद्धि बढ़े।

सरकार का उद्देश्य यह होता है कि Capex बढ़ाने से आर्थिक विकास तेज हो, रोजगार बढ़े, और देश की आधारभूत संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) बेहतर बने, जिससे भविष्य में देश की उत्पादन क्षमता मजबूत हो |

फॉरेक्स ट्रेडिंग का क्या है?

फॉरेक्स ट्रेडिंग (FOREX Trading) का मतलब है एक देश की मुद्रा (जैसे भारतीय रुपया) को दूसरी देश की मुद्रा (जैसे अमेरिकी डॉलर) के साथ बदलना—ता​कि भविष्य में जब उनकी कीमतें बदलें, तो इससे लाभ कमाया जा सके |

फॉरेक्स ट्रेडिंग (Forex Trading) को विदेशी मुद्रा व्यापार (Foreign Exchange Trading) या करेंसी ट्रेडिंग भी कहा जाता है। यह एक वैश्विक बाजार है जहाँ विभिन्न देशों की मुद्राओं का व्यापार किया जाता है। फॉरेक्स बाजार दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय बाजार है, जहाँ प्रतिदिन लगभग $7 ट्रिलियन का व्यापार होता है।

विदेश यात्रा करते समय फॉरेक्स ट्रेडिंग करेंसी एक्सचेंज की तुलना में एक ट्रेडर एक करेंसी खरीदता है और दूसरी करेंसी बेचता है, और एक्सचेंज रेट आपूर्ति और मांग के आधार पर अक्सर अलग-अलग होती है|

सरल भाषा में –

  • सोचिए, आपके पास कुछ रुपये हैं और आप अमेरिका घूमने जा रहे हैं। एयरपोर्ट या बैंक से आप रुपये देकर डॉलर खरीदते हैं। इसी तरह विदेशी लोग भी अपनी करेंसी बेचकर रुपये खरीदते हैं। जब आप ज्यादा रेट पर बेचते हैं या कम रेट पर खरीदते हैं, तो बीच का फर्क ही आपका मुनाफा या घाटा बनता है।
  • फॉरेक्स ट्रेडिंग में लोग इस बदलती हुई कीमत का फायदा उठाने के लिए करेंसी खरीदना-बेचना करते हैं।
  • उदाहरण : – आज 1 डॉलर = ₹85 है, आपने डॉलर खरीदा। कल वही डॉलर ₹90 पर बिकता है, तो आपने 5डॉलर कमा लिया।
  • ये खरीद-बिक्री एक ऑनलाइन बाजार (market) में होती है, जिसे FOREX या FX Market कहते हैं। यह दुनियाभर का सबसे बड़ा ट्रेडिंग मार्केट है — यहाँ रोज़ करोड़ों का लेन-देन होता है।
  • यहाँ ज्यादातर लेनदेन बैंक, बड़ी कंपनियाँ और कुछ लोग ऑनलाइन करते हैं।
  • फॉरेक्स मार्केट 24 घंटे, सप्ताह में पाँच दिन खुली रहती है

फॉरेक्स मार्केट एक विकेन्द्रीकृत (Decentralized) बाजार है, जिसका मतलब है कि इसका कोई भौतिक स्थान नहीं होता। यह बाजार 24 घंटे, सोमवार से शुक्रवार तक खुला रहता है। इसमें अलग-अलग समय क्षेत्रों के अनुसार व्यापार किया जाता है, जैसे:

  1. सिडनी सेशन
  2. टोक्यो सेशन
  3. लंदन सेशन
  4. न्यूयॉर्क सेशन

इन सेशन्स के कारण व्यापारी दुनिया भर से अपनी सुविधा के अनुसार ट्रेडिंग कर सकते हैं।

फॉरेक्स ट्रेडिंग कैसे काम करती है?

फॉरेक्स ट्रेडिंग में आप एक करेंसी को खरीदते हैं और दूसरी को बेचते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य एक करेंसी की कीमत में वृद्धि (Appreciation) या कमी (Depreciation) का लाभ उठाना है।फॉरेक्स ट्रेडिंग बहुत सरल ढंग से कहें तो अलग-अलग देशों की मुद्राओं (जैसे रुपया, डॉलर, यूरो) को एक-दूसरे से ऑनलाइन खरीदने और बेचने की प्रक्रिया है। इसमें लोग उम्मीद करते हैं कि बदलती कीमतों से मुनाफा कमा लेंगे।

  • फॉरेक्स ट्रेडिंग हमेशा करेंसी पेयर (जोड़ों) में होती है, जैसे USD/INR (अमेरिकी डॉलर/भारतीय रुपया) या EUR/USD (यूरो/डॉलर)। इसका अर्थ: एक मुद्रा को बेचकर दूसरी मुद्रा खरीदना।
  • उदाहरण: अगर आपको लगता है कि डॉलर की कीमत बढ़ेगी, तो आप “खरीद” (Buy) का ऑर्डर लगा सकते हैं। अगर बाद में डॉलर महंगा हो गया, तो आप बेचकर फायदा कमा सकते हैं।
  • इसी तरह, अगर लगता है कि कोई करेंसी सस्ती हो जाएगी, तो आप उसे “बेच” (Sell) सकते हैं, और बाद में सस्ती कीमत पर खरीदकर मुनाफा कमा सकते हैं।

फॉरेक्स ट्रेडिंग कौन कर सकता है?

  • कोई आम इंसान भी सही तरीके से (सरकारी नियम मानकर) फॉरेक्स ट्रेडिंग कर सकता है। भारत में यह स्टॉक एक्सचेंज (NSE/BSE) के जरिए अधिकृत ब्रोकर्स की मदद से होता है।

सबसे जरूरी — रिस्क

  • इसमें मुनाफा जितना तेज़ हो सकता है, उतना घाटा भी जल्द हो सकता है। भाव रोज बदलते हैं, इसलिए समझदारी और जानकारी से ही इसमें ट्रेडिंग करनी चाहिए।

सारांश:
फॉरेक्स ट्रेडिंग में असल में सिर्फ अलग-अलग देशों की मुद्राएँ खरीदना और बेचना होता है—प्रॉफिट कमाने के लिए। यह दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, पर इसमें बहुत समझदारी और जोखिम के साथ काम करना जरूरी है।

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) क्या है? 

प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) का मतलब है किसी भी देश या क्षेत्र में हर एक व्यक्ति की औसत आय कितनी है। इसे बहुत ही सरल भाषा में समझें तो, यह बताता है कि अगर किसी देश की कुल कमाई को वहां के सभी लोगों में बराबर बांट दिया जाए, तो हर व्यक्ति के हिस्से में कितनी आय आएगी।

प्रति व्यक्ति आय विभिन्न देशों के अलग-अलग जीवन स्तर का एक महत्वपूर्ण सूचकांक होती है। यह मानव विकास सूचकांक में सम्मिलित तीन संख्याओं में से एक है। अनौपचारिक बोलचाल में प्रति व्यक्ति आय को औसत आय भी कहा जाता है, और आमतौर पर अगर एक राष्ट्र की औसत आय किसी दूसरे राष्ट्र से अधिक हो, तो पहला राष्ट्र दूसरे से अधिक समृद्ध और सम्पन्न माना जाता है।

कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ वार्षिक रूप से विश्वभर के देशों की प्रति व्यक्ति आय की सूचियाँ बनाती हैं।

यह सूचियाँ दो आधारों पर बनाई जाती हैं –

  • अभारित सूची (Nominal) – यह सरल सूचियाँ सीधे कमाई जाने वाली मुद्रा में आय को लेकर अभारित रूप से (यानि बिना किसी फेर-बदल के) बनाई जाती है और अधिकतर इन्हीं सूचियों का प्रयोग होता है।
  • क्रय-शक्ति समता पर आधारित सूची (PPP) – यह सूचिया क्रय-शक्ति समता के आधार पर बनती हैं और इनसे यह अंदाज़ा लगाया जाता है कि किसी क्षेत्र में लोग अपनी आय से कितना खरीद सकते हैं, जो भिन्न माल और सेवाओं की स्थानीय कीमतों पर निर्भर करता है।

कैसे निकालते हैं प्रति व्यक्ति आय –

जीडीपी प्रति व्यक्ति आय को नॉमिनल जीडीपी को देश की जनसंख्या से भाग देकर निकाला जाता है। इससे तय होता है कि देश में प्रति व्यक्ति औसत आय कितनी है। जब किसी वर्ष की जीडीपी की गणना की जाती है ,उसी वर्ष के मध्य की जनसंख्या का आंकड़ा भाग करने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • प्रति व्यक्ति आय = कुल राष्ट्रीय आय ÷ कुल जनसंख्या
  • उदाहरण: अगर किसी देश की कुल सालाना आय 80 लाख रुपये है और वहां 10 लोग रहते हैं, तो प्रति व्यक्ति आय होगी 80,00,000 ÷ 10 = 800,000 रुपये।

इसका क्या महत्व है –

  • यह किसी देश या क्षेत्र के लोगों की औसत आर्थिक स्थिति को दिखाता है।
  • इससे पता चलता है कि उस देश के लोगों का जीवन स्तर (standard of living) कितना अच्छा और ख़राब है।
  • इसका उपयोग देशों या राज्यों की तुलना करने या वहाँ की आर्थिक प्रगति समझने के लिए भी किया जाता है |

आसान भाषा में समझिए –

  • “प्रति व्यक्ति” यानी “हर व्यक्ति के लिए”,
  • “आय” यानी “कमाई”।
  • जैसे स्कूल में टीचर 100 टॉफियाँ 20 बच्चों में बराबर बांट दे, तो हर बच्चे को 5 टॉफियाँ मिलती हैं। ठीक वैसे ही, देश की कुल कमाई जितने लोग हैं, उनके बीच बांट दी जाती है, तो प्रति व्यक्ति आय पता चलती है।

मुख्य बातें –

  • यह औसत आय है, सभी लोगों की कमाई एक जैसी नहीं होती, पर यह एक साधारण माप है।
  • देश की वास्तविक खुशहाली के लिए सिर्फ यह आंकड़ा काफी नहीं है, मगर तुलनात्मक और योजनाबद्ध सोच के लिए यह आसान और जरूरी तरीका है।