MARKET STRUCTURE संरचना क्या है और ट्रेडिंग मैं Market Structure क्यों जरुरी है?

वो तरीका है जिससे बाजार में चीजें (सामान, शेयर, या कोई भी प्रोडक्ट) खरीदी-बेची जाती हैं और इसमें कितने लोग (खरीदार-विक्रेता), उनकी ताकत, और उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा कैसी है , आर्थिक सिद्धान्त में यह मान लिया जाता है कि विचाराधीन बाजार के प्रकार द्वारा मूल्य निर्धारण और फर्म विशेष का व्यवहार महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित होता है, इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकारी प्रतियोगिता, अल्पाधिकार और एकाधिकार की स्थितियों के बीच विभेद किया जाता है। 

बाजार में किस तरह से खरीदार और विक्रेता मिलकर चीजें खरीदते-बेचते हैं, और उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा (कॉम्पिटिशन) कैसी है

  • ये सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि एक सिस्टम या तरीका है, जिसमें कई लोग शामिल होते हैं।
  • उदाहरण के लिए सब्जी मंडी, शेयर बाजार(ट्रेडिंग), या ऑनलाइन शॉप – सबका अपना “बाजार संरचना” है।

Structure बाजार की मुख्य संरचना :-

  • Perfect Competition (पूर्ण प्रतिद्वंदी बाजार): बहुत सारे विक्रेता, एक जैसी चीजें बेचते हैं, कोई किसी को कंट्रोल नहीं कर सकता, दाम बाजार तय करता है।
  • Monopoly (एकाधिकार): एक ही विक्रेता होता है, वही दाम और रूल बनाता है, कोई कॉम्पिटिशन नहीं।
  • Oligopoly (अल्पाधिकार): गिने-चुने बड़े विक्रेता होते हैं (जैसे मोबाइल कंपनियां), ये चाहे तो आपस में दाम सेट कर सकते हैं।
  • Monopolistic Competition: हर कंपनी थोड़ा अलग चीज बेचती है (जैसे जूते, साबुन की कंपनियां), लेकिन काफी प्रतियोगिता रहती है

ट्रेडिंग में हम Market structure से क्या समझते है

  • बाजार ऊपर जा रहा है और नीचे जा रहा है ये हम मार्किट के स्ट्रक्चर को देख के समझते है |
  • कब ट्रेंड बदलेगा
  • कब हमें बाजार में एंट्री करनी है और कब बाजार से निकल है
  • निवेशक का इंटरेस्ट बताता है

ट्रेडिंग में MARKET STRUCTURE का महत्व :-

  • ट्रेडिंग (शेयर या चीजों की खरीद-बिक्री) में मार्केट स्ट्रक्चर बताता है कि प्राइस (कीमत) ऊपर जाएगी, गिरेगी या साइड में रहेगी।
  • ट्रेडर चार्ट देखकर तीन स्टेज समझते हैं:
    • अपट्रेंड (कीमत लगातार ऊपर)
    • डाउनट्रेंड (कीमत लगातार नीचे)
    • साइडवेज़ (कीमत एक रेंज में घूम रही)
  • प्राइस ऊपर-नीचे होने की वजह – मांग, सप्लाई, और बड़े-बड़े खिलाड़ियों (बड़े खरीदार/विक्रेता) की हरकतें होती हैं।

ट्रेडिंग मैं मार्किट स्टरक्चरे को समझ ने कुछ इम्पोर्टेन्ट फैक्टर –

1. Higher Highs & Higher Lows (Uptrend )

2. Lower Highs & Lower Lows (Downtrend)

3. Break of Structure (BOS)

4. Support & Resistance

5. Volume

फेयर वैल्यू गैप (Fair Value Gap) ट्रेडिंग में क्या होता है ?

फेयर वैल्यू गैप (Fair Value Gap) ट्रेडिंग में एक ऐसा प्राइस रेंज होता है जहाँ बहुत कम या बिलकुल भी ट्रेडिंग नहीं हुई, खासतौर पर अचानक भारी खरीद या बिक्री के कारण। ऐसे गैप चार्ट पर तीन कैंडल के पैटर्न से बनते हैं, और ट्रेडिंग में इन्हें प्राइस के वापस लौटने व रिवर्स होने के संभावित ज़ोन के तौर पर यूज़ किया जाता है

फेयर वैल्यू गैप क्या है?

  • जब प्राइस अचानक तेजी से ऊपर या नीचे भागता है और क्रमशः तीन कैंडल्स में से पहले और तीसरे कैंडल के बीच एक खुला गैप दिखता है, इसे ही फेयर वैल्यू गैप कहते हैं.
  • उदाहरण: अपट्रेंड में अगर पहली कैंडल का हाई और तीसरी का लो अलग-अलग हों, बीच की कैंडल के प्राइस रेंज में ‘गैप’ रह जाए, वही FVG है।

सरल शब्दों में Fair Value Gap की अवधारणा क्या है?

एक Fair Value Gap (FVG) मूल रूप से वर्तमान बाजार कीमत और आर्थिक कारकों या तकनीकी विश्लेषण में औसत की ओर वापसी के विचार के आधार पर इसकी मानी जाने वाली कीमत के बीच का अंतर है। यह अक्सर बाजार भावना, आर्थिक समाचार, या भू-राजनीतिक घटनाओं से उत्पन्न होता है जो अस्थायी रूप से किसी मुद्रा की कीमत को उसके मौलिक मूल्य से ऊपर या नीचे धकेल देते हैं। इन असंतुलनों का उपयोग व्यापारी मूल्य सुधारों से लाभ कमाने के लिए कर सकते हैं।

FVG की पहचान कैसे करें ?

Fair Value Gap (FVG) ट्रेडिंग के लिए विभिन्न दृष्टिकोण हैं |

1. तीन लगातार कैंडल्स का समूह लें

चार्ट पर कहीं भी तीन लगातार कैंडल चुनें और उनका प्राइस रेंज गौर से देखें.

2. रेंज की तुलना करें

  • मिडल (बीच) कैंडल की प्राइस रेंज पर फोकस करें।
  • अगर पहली कैंडल का हाई और तीसरी कैंडल का लो (अपट्रेंड में) आपस में ओवरलैप नहीं करते, तो बीच वाली कैंडल के प्राइस रेंज में ‘गैप’ बनता है.

3. मार्क करें FVG

  • जो प्राइस रेंज पहली और तीसरी कैंडल से टच नहीं हो रही, उस हिस्से को चार्ट पर हाइलाइट या मार्क कर लें—यही आपका FVG है.

4. कंफर्म करें

  • देखें प्राइस बाद में इस FVG ज़ोन में वापस आता है या नहीं।
  • प्राइस अगर वहां रिवर्स, बाउंस या ठहराव दिखाए तो FVG कंफर्म मान सकते हैं।
  • वॉल्यूम या अन्य सप्लीमेंट्री इंडिकेटर से भी जांचें.

FVG के पीछे Psychology विचार क्या है?

FVG के पीछे की मनोविज्ञान दिखाता है कि बाजार में अचानक खरीद या बिक्री का दबाव बढ़ गया जिससे प्राइस ने एक तेज़ मूव किया और कुछ प्राइस रेंज पूरी तरह से स्किप हो गई। इसका मतलब है कि उस समय बाजार में खरीदार या विक्रेता की इच्छा असंतुलित थी।इस असंतुलन को व्यापारी पहचानकर समझते हैं कि बाजार को उस “खाली” हिस्से या गैप को भरने की कोशिश करनी है जिससे उस क्षेत्र पर फिर से ट्रेडिंग हो सकती है.

जो व्यापारी इस सिद्धांत का पालन करते हैं, वे मानते हैं कि बाजार समय के साथ खुद को सुधारने की प्रवृत्ति रखते हैं। इसलिए, यदि कोई मुद्रा जोड़ी एक अंतराल का अनुभव करती है जहां कीमत उसकी उचित मूल्य से काफी अधिक या कम होती है, तो यह अपेक्षा की जाती है कि कीमत अंततः उस उचित मूल्य पर वापस आ जाएगी

कुछ दूसरे साइकोलॉजी रीज़न –

  1. संस्थागत और बड़े प्लेयर्स की एंट्री-एग्जिट
    बड़ी संस्थागत संस्थाओं या होर्डर ब्लॉकों की वजह से तेज मूव होते हैं। ये बड़ी संस्थाएं मार्केट में अचानक ऑर्डर डालकर प्राइस को त्वरित दिशा में ले जाती हैं।
    छोटे निवेशक अक्सर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे पाते, जिससे यह गैप बनता है। बाद में प्राइस वापस आकर इस गैप को “फिल” करता है क्योंकि मार्केट उसे फेयर वैल्यू पर लाना चाहता है.
  2. भावनात्मक प्रतिक्रिया
    ट्रेडर सोचते हैं कि जब कोई प्राइस रेंज बिना ट्रेडिंग के छोड़ दी गई हो, तो मार्केट को उस क्षेत्र में वापस जाना चाहिए।
    यह मनोवैज्ञानिक “असमानता को पूरा करने” की प्रवृत्ति है – जैसे बाजार में बैलेंस फिर से स्थापित करना। इसलिए, FVG पर प्राइस अक्सर रिवर्स या रिट्रेस करता है.
  3. ट्रेडिंग में भरोसा और जोखिम प्रबंधन
    FVG की पहचान से ट्रेडर को ऐसा ज़ोन मिलता है जहाँ वे कम जोखिम लेकर एंट्री कर सकते हैं क्योंकि वहाँ सारा इन्फॉर्मेशन असंतुलन का था जिसका सुधार होना बाकी था।
    यह मनोवैज्ञानिक रूप से व्यापारियों को आत्मविश्वास और स्पष्टता देता है कि वे सही जगह इन्वेस्ट कर रहे हैं

सारांश:

फेयर वैल्यू गैप ट्रेडिंग के पीछे की मनोविज्ञान बाजार में एक असंतुलित स्थिति को पहचानना और उस स्थिति को सुधारने के लिए प्राइस के वापस लौटने की उम्मीद पर आधारित है। यह संस्थागत ट्रेडिंग की तीव्रता, मनोवैज्ञानिक संतुलन और जोखिम प्रबंधन से जुड़ा है